Monday 27 February 2012

अनुशासित अनुपम उड़ान की, अनुभूती अंतर्मन कर ले

गाँव-राँव की बात यह, आकर्षक दमदार ।
हावी कृत्रिमता हुई, लोग होंय अनुदार ।।

 लोग होंय अनुदार, गाँव की बात निराली ।
भागदौड़ के शहर, अजूबे खाली-खाली ।।

झेलें कस्बे ग्राम, मुसीबत किन्तु दांव की ।
लगे बदलने लोग, हवा अब गाँव-राँव की ।।

पारस्परिक यह लेना देना, परम्परा है प्यार की ।
प्रीत्यर्थी ये छुआ-छुआना, मर्यादित अभिसार की ।।


  Akanksha 

अनुशासित अनुपम उड़ान की, अनुभूती अंतर्मन कर ले ।
जीवन सफ़र सरल हो जाये, आसमान मुट्ठी में भर ले ।।  

लहरें नाम मिटा देती हैं, अच्छा है पत्थर पर लिखता ।
कोने में करता स्थापित, हर पल साथी सम्मुख दिखता ।।

यादों को कितना खुबसूरत, कविवर आप बना देते हो ।
पत्थर पर लिखकर क्या करना, दिल में सही सजा लेते हो ।। 
 
सहज सरल उत्तर है प्रियवर, सतत-सात्विक नेह दिखा है ।
वास कर रही पुण्यात्मा, दृग्भक्ती दृढ़-देह दिखा है ।।

"कुछ ख्वाब- कुछ मंजिले"


यादें - अमरेन्द्र शुक्ल 'अमर'


ख्वाबगाह से बाहर निकले, ख़्वाब ख्वाह हो जाते हैं ।
ख्वाहमखाह ख्यालों को खरभर, खार खेद बो जाते हैं ।। 

5 comments:

  1. दिनेश जी,...
    यह टिप्पणी नही भावनाओं के उदगार है
    आप खुशरहे,यही ब्लागजगत का प्यार है

    बहुत बढ़िया सराहनीय प्रस्तुति,....

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  2. बहुत सुंदर भावमयी टिप्पणियां ...

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  3. bahut sunder prastuti, sabhi link behtreen...........
    padhker accha lga...........

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