Tuesday 31 July 2012

वैवाहिकी :मैनेजिंग डायरेक्टर चाहिए-

 (1)
सास-ससुर पति ननद दो, भावी दो संतान।
स्नेह-सूत्र में बाँध ले, जो कन्या मुस्कान ।

जो कन्या मुस्कान, व्यवस्था घर की सारी ।
एक्जीक्यूटिव रैंक, सैलरी  रखे हमारी ।

मन श्रद्धा-विश्वास, परस्पर सुख-दुःख बांटे ।
बने धुरी मजबूत, गृहस्थी भर फर्राटे ।।

 25 अप्रैल 1988, 5'8'', 55 Kg , रंग साफ़,
 B Tech -MNNIT इलाहाबाद -
TCIL, Telecommunication विभाग भारत सरकार 
नई  दिल्ली में  E-2
आजकल - आबुधाबी में पदस्थापित 
जातिबंधन-सर्व वैश्य मान  

छोटी बहने:अविवाहित 
1) मनु NIT दुर्गापुर से B Tech 
TCS लखनऊ में कार्यरत 
2) स्वस्ति-मेधा BIET झाँसी में 
Chemical Engg, B Tech 3rd Year
पिता 
दिनेश चन्द्र गुप्ता "रविकर"
STA , Department of Electronics 
ISM, Dhanbad / लोग इसे IIT Dhanbad के नाम से जानते हैं 
माता
घर की वर्तमान प्रभारी : जिन्हें अपने बच्चों पर गर्व है ।
माँ को समर्पित कुंडली 
 (2)
होलीडे इकदम नहीं, भर जीवन संघर्ष ।
यदा-कदा सिक लीव है, कठिन वर्ष दर वर्ष ।

कठिन वर्ष दर वर्ष , हर्ष के पल खुब पायी।
नहीं कहीं प्रतिबन्ध, स्वयं से मन बहलायी।

 कोटि-कोटि आभार, मिली जो प्यारी माता ।
घर भर की आधार, हमारी भाग्य-बिधाता ।।
नोट:
(3)
नारी वादी सोच से, नहीं कहीं तकरार ।
किन्तु प्राथमिकता मिले, दोनों कुल परिवार ।

दोनों कुल परिवार, रखे अक्षुण मर्यादा ।

हो अपनों से प्यार, स्वयं से पक्का वादा ।


कर खुद का उत्थान, देश हित रख कर आगे ।

ईश्वर पर विश्वास, सरलतम जीवन मांगे । 

 

(4)

केवल अपना स्वार्थ ही, करे हमेशा सिद्ध ।
दुनिया जाये भाड़ में, ऐसे जीव निषिद्ध ।

ऐसे जीव निषिद्ध, वृद्धि सीमित अपने तक ।
ऋद्धि-सिद्धि गृह भूल, माँगते है अपना हक़ ।

दें कर्तव्य विसार, दिखाए पल पल छल-बल |

उन्हें ठगे यह विश्व, देह इक माने केवल ||

(5)

जीवन भर पढता रहा, बना एक ही ध्येय ।

इक अच्छा इंसान बन, पूजू सब श्रद्धेय ।


पूंजू सब श्रद्धेय, धर्म संस्कृति की पूजा ।

ढूंढ़ रहा हमसफ़र, चक्र गाड़ी का दूजा ।


सदाचार आचरण, सदा सम्मानित
नारी
करूँ जिन्दगी वरण, बनूँ पक्का व्यवहारी ।।



Monday 30 July 2012

दारुण जहर क'साब, मिला फन मेरा-बाढ़े -

बाढ़े लुच्चे हुनरमंद, हर फन बाढ़े ढेर ।
लीडर अफसर बूचड़ी, दल्ले धूर्त अँधेर  ।

http://www.theworshipcommunity.com/wp-content/uploads/2008/07/worship-leader-cartoon.gif



दल्ले धूर्त अँधेर, बड़े  फन के सब पक्के ।
 काटें देर-सवेर,  मार के भागें धक्के ।

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दे फन के उस्ताद,  कहे फनिधर फन काढ़े ।
दारुण जहर क'साब, मिला फन मेरा-बाढ़े ??

Sunday 29 July 2012

टिप्पण-रुप्पण एक सम, वापस मिली न एक

चौपड़ पर बेगम सजे, राजा बैठ अनेक |
टिप्पण-रुप्पण एक सम, वापस मिली न एक |

Custom Imprinted Playing Cards

वापस मिली न एक, दाँव रथ-हाथी-घोड़े |
 थोड़े चतुर सयान, टिपारा बैठे मोड़े |
File:Jack playing cards.jpg
कह रविकर कविराय, गया राजा का रोकड़ |
जीते सभी गुलाम, हारते रानी-चौपड़ ||

Thursday 26 July 2012

अबला रगड़ी जा रही, मुंह पर पट्टी तान

ये बरसाती बीमारियां

कुमार राधारमण
स्वास्थ्य  


 वर्षा ऋतु में मौज की, हद करिए न पार ।
आँखों की बीमारियाँ, अपनी त्वचा संवार ।
अपनी त्वचा संवार, उंगलियाँ गल  न जाएँ ।
डेंगू-फ्लू बुखार, सफाई खूब कराएं ।
मच्छर लेते जान, पेट गड़बड़ भी होता ।
डायरिया पर ध्यान, स्वास्थ्य जल्दी ही खोता ।।

सामाजिक सरोकारों से जुड़ कर कैसे काम करें?

 masum@payameamn.com

 

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अबला रगड़ी जा रही, मुंह पर पट्टी तान ।
आँखों से आनंद लें, वाह वाह बलवान ।
वाह वाह बलवान , सड़क पर घायल लोटे ।
कटे हुए ज्यों हाथ, खिसकते खोते खोटे ।
 कटा हुआ इक कान, सुने हद ऊंची बातें ।
श्वान रूप इंसान, पाद दो उमर बिताते ।।

food myths & facts

veerubhai
ram ram bhai  

लहसुन खाने से नहीं, मच्छर भागें पार्थ |
माशूका खिसके मगर, रविकर यही यथार्थ ||

अम्ल अमीनो सोडियम, दिल को रखे दुरुस्त |
पोटेशियम तरबूज से, मिले यार इक मुश्त ||

पोषक तत्व बचाइये, भूलो सज्जा स्वाद  |
चिकनाई शक्कर बढे, बिगड़े भला सलाद |

हिंदी तो अंग्रेजों का कुत्ता भी लिख लेता है -रविकर चर्चा मंच 953


अच्छी यादों को सदा, दुहराते हम लोग |
हंसी ख़ुशी उत्साह का, सर्वोत्तम उद्योग ||

तुम पुष्प भाँति मुस्कान लिये

प्रतुल वशिष्ठ
दर्शन-प्राशन

धीर धरा सा धारो |
मन-व्यग्र सँभालो यारो |
इक रेखा ऐसी पारो-
जिससे हृदय न हारो ||

 निद्रा गहन उबारो |
सपने सरल सँवारो |
मद का बोझ उतारो |
तो नैना मिलते चारो ||

मोदीजी !!... संभलकर !!



हाय हाय हिंदुत्व हठ, हाथ होय जो सिद्ध |
फांसी पर देना चढ़ा, खुश हों सुनकर गिद्ध |
खुश हों सुनकर गिद्ध, मांस मोदी का मीठा |
प्रेक्टिस में जल्लाद, बाँध कर खींचे गीठा |
प्रतिभा करती क्षमा, प्रणव के स्वर भर्राने |
मोदी का अज्ञान, राष्ट्रपति गए पुराने ||

Wednesday 25 July 2012

हिंदी को दी गालियाँ, उर्दू पर क्या ख्याल- रविकर

हिंदी तो उनका कुत्ता भी लिख लेता है .,


फ़ेसबुक .....चेहरों के अफ़साने


 हिंदी को दी गालियाँ, उर्दू पर क्या ख्याल ।
लिपि का अंतर है मियाँ, करते अगर  बवाल ।

करते अगर बवाल, भूल जाते मक्कारी ।
रहते ना महफूज,  डूब जाती  मुख्तारी ?

अंग्रेजी में छपो, हमेशा फेरो माला ।
तन-मन का ये मैल, निगल खुद बना निवाला  ।।

अनशन: टीम अन्ना का टीवी प्रेम ...

महेन्द्र श्रीवास्तव 
 
 मुखिया की निंदा करें, तोड़े  घर परिवार ।
ऐसे लोंगों की यहाँ, हर घर में भरमार ।
हर घर में भरमार, मार दम भर अब इनको ।
पूज राष्ट्रपति रूप,  नहीं अब ज्यादा बहको ।
करो  देश बदनाम , आज दे दे के गाली ।
मर्यादायें भूल,  सड़क के बने मवाली ।।
अब वे हमारे राष्ट्रपति हैं ।।




काव्य मंजूषा

चाह संग हमराह जहाँ, हैं वहीँ निकलती राहें  |
डाह मगर गुमराह करे, बस बरबस बाहर आहें ||


प्रतिस्पर्धी नही युगल ये, पूरक अपने सपने के-
पले परस्पर प्रीति पावनी, नित आगे बढ़ें सराहें ||


खुशियों की बरसात सदा हो, नव-विहान मंगलमय होवे |
समय-माल में यह विहान नित, उपलब्धि के पुष्प पिरोवे |
प्रथम जन्म-दिन आज मनाकर, ब्लॉगर सभी ख़ुशी से फूले-
चिरंजीव आनंद बांटता, अभ्युदय भाई में खोवे ||







कहानी लेखन पुरस्कार आयोजन - प्रविष्टि क्र. 6 : 

राकेश कुमार ‘अयोध्‍या’ की कहानी - आहुति


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पती पुरोहित पाप को, वह स्त्री नादान ।
कायर सा क्यूँ  भोगती,  यह सारा अपमान  ।
यह सारा अपमान, जुबाँ पर जड़ के ताले ।
सह ली धुर अपमान, पका  के पाप निवाले ।
द्रुपद-सुता तो द्यूत, भागवत का यह मसला ।
पापी पंडित दुष्ट, पती शंकालू पगला ।।

कर कुर्सी कुर्बान, बड़ी पावर पा जाती-रविकर

  आज के कुछ और लिंक 

आँख फाड़ कर देखना, ठंडी करना आँख - रविकर


स्मृति शिखर से – 18 : सावन

करण समस्तीपुरी 

विवरण मनभावन लगा, सावन दगा अबूझ |
नाटक नौटंकी ख़तम, ख़तम पुरानी सूझ |
ख़तम पुरानी सूझ, उलझ कर जिए जिंदगी |
अपने घर सब कैद, ख़तम अब दुआ बंदगी |
गुड़िया झूला ख़त्म, बची है राखी बहना |
मेंहदी भी बस रस्म, अभी तक गर्मी सहना ||

"कबूतर कबूतर "


 कोई चारा ना बचा, बेचारी यह कैट |
राजनीति की टोपियाँ, लगा हटा के हैट |
लगा हटा के हैट, रही विश्वास जगाती |
कर कुर्सी कुर्बान, बड़ी पावर पा  जाती |
आज कबूतर भक्त, बड़ी इज्जत करते हैं |
अनुशासन है सख्त, कई पानी भरते हैं ||

महामहिम का घोड़ा

Sanjay Mahapatra
फुरसतनामा 

यह घोडा बंदूक का, करे आर या पार ।
लेकिन ढाई घर चला, घर के लिए सवार ।
घर के लिए सवार, मौन मन कर बेगारी।
ढोया सारा भार, रहा बनकर व्यवहारी ।
रविकर जैसे गधे, सधे बन बड़े खिलाड़ी ।
पांच साल घुड़साल, ताकिये बैठ अगाड़ी ।।




टिपण्णी कैसे करनी चाहिए ?

आमिर दुबई 

पूरे विषय को पढ़कर, विभिन्न ब्लॉग पर, 10-12 अच्छी टिप्पणी  
करने के बाद एक आभार भी वापस  नहीं मिलता तब दुःख होता है ।।

अर्थ टिप्पणी का सखे, टीका व्याख्या होय ।
ना टीका ना व्याख्या, बढ़ते आगे टोय ।
बढ़ते आगे टोय, महज कर खाना पूरी ।
धरे अधूरी दृष्टि, छोड़ते विषय जरुरी ।
पर उनका क्या दोष, ब्लॉग पर लेना - देना ।
यही बना सिद्धांत, टिप्पणी चना-चबैना ।।


सावन आये सुहावन (शनिवार - फुर्सत में...) … करण समस्तीपुरी

मनोज

तरसे या हरसे हृदय, मास गर्व में चूर |
कंत हुवे हिय-हंत खुद, सावन चंट सुरूर |
सावन चंट सुरूर, सुने न रविकर कहना |
राखी में मगरूर, पिया की जालिम बहना |
लेती इन्हें बुलाय, वहाँ पर खुशियाँ बरसे |
मन मेरा अकुलाय, मिलन को बेहद तरसे ||

राहुलजी आगे बढ़ो !!


हमरा-हुल्लड़ जात का , हम राहुल लड़ जात |
मसला टूटी खाट का, खा के जूठा भात |
खा के जूठा भात , रात खटिया पर जागा |
माया को औकात, बताने खातिर भागा |
भाग-दौड़ सब व्यर्थ, फेल पप्पू हो जाता |
राहुल जी मजबूत, हृदय हमरा दहलाता ||

Tuesday 24 July 2012

आँख फाड़ कर देखना, ठंडी करना आँख - रविकर


बढती उम्र का असर न पड़े बीनाई (विजन )पर

veerubhai at ram ram bhai -

आँख फाड़ कर देखना, ठंडी करना आँख |
आँख नचाना डालना, चार करो तुम लाख |
चार करो तुम लाख, शाख पर बट्टा लागे |
ग्लूकोमा कांट्रेक्ट, बिगाड़े काम अभागे |
खान-पान का ढंग, जांच नियमित करवाओ |
धूम्र-पान कर बंद, सुरक्षा ग्लास लगाओ ||


बादल को किसने देखा है ?

संतोष त्रिवेदी
बैसवारी baiswari

बचपन में भोगा दिखा, टपका का भय खूब ।
वर्षा ऋतु में रात दिन, टप टप जाए ऊब ।
टप टप जाए ऊब, आज भी टपका लागा ।
बिन बादल की उमस, पसीना टपक अभागा ।
करता है बेचैन , नैन टकटकी लगाए ।
ताकें जल के सैन, और कुछ भी ना भाये ।।





ZEAL
ZEAL
एजेंडा सरकार का, पछुवा बहे बयार ।
संस्कृति भाषा सभ्यता, सब कुछ मिले उधार । 
सब कुछ मिले उधार, पियो घी भरा कटोरा ।
अंग्रेजी गुणगान, बके हिंदी गर छोरा ।
इक झन्नाटे दार, मैम से थप्पड़ खाता ।
माई कंट्री बेस्ट, यही फिर गीत सुनाता ।। 
  



शिखा कौशिक
भारतीय नारी  

उबटन से ऊबी नहीं, मन में नहीं उमंग ।
पहरे है परिधान नव, सजा अंग-प्रत्यंग ।
सजा अंग-प्रत्यंग , नहाना केश बनाना ।
काजल टीका तिलक, इत्र मेंहदी रचवाना ।
मिस्सी खाना पान, महावर में ही जूझी ।
करना निज उत्थान, बात अब तक ना बूझी ।।

मूंह से निकली बात , कमान से निकला तीर और सर के उड़े बाल -- कभी वापस नहीं आते ?

 डॉ टी एस दराल

बाल बाल बचता रहा, किन्तु बाल की खाल ।
बालम के दो बाल से, बीबी करे बवाल ।
बीबी करे बवाल, बाल की कीमत समझे ।
करती झट पड़ताल , देख कंघी को उलझे ।
दो बालों में आय, हमारी साड़ी सुन्दर ।
बचे कुचे सब बाल, हार की कीमत रविकर ।।


पुस्‍तक पहुंच रही है उसतक ?

नुक्‍कड़
नुक्कड़  


पुश्तैनी *पुस परंपरा, पीती छुपकर दुग्ध |*बिल्ली
पाठक पुस्तक पी रहे, होकर के अति मुग्ध |
होकर के अति मुग्ध, समय यह शून्य काल का ||
गूढ़ व्यंग से दंग, मोल है बहुत माल का |
वाचस्पति आभार, धार है तीखी पैनी |
पूरा है अधिकार, व्यंग बाढ़े पुश्तैनी ||

घूँघट में व्यभिचार, करे ब्लॉगर बेनामी-रविकर


मानस में नारी विमर्श:समापन पोस्ट!


बेनामी नामी कई, रखें राय बेबाक |
मुद्दे को समझे बिना, गजब घुसेड़ें नाक |
गजब घुसेड़ें नाक, तर्क पर बड़ी पकड़ है |
थी कालेज में धाक, तभी तो दंभ अकड़ है |
गुरुवर का आभार, बना रविकर अनुगामी |
घूँघट में व्यभिचार, करे ब्लॉगर बेनामी || 

का न करै अबला प्रबल?.....(मानस प्रसंग-7)

 (1)

बिगत युगों की परिस्थिति, मुखर नहीं थी नार ।
सोच-समझ अंतर रखे, प्रगटे न उदगार ।
प्रगटे न उदगार, लांछित हो जाने पर ।
यह बेढब संसार, जिंदगी करता दूभर ।
रहस्यमयी वह रूप, किन्तु अब खुल्लमखुल्ला ।
पुरुषों को चैलेन्ज, बचे न पंडित मुल्ला ।
(2)

अब रहस्य कुछ भी नहीं, नहीं छुपाना प्रेम ।
कंधे से कन्धा मिला, करे कुशल खुद क्षेम ।
करे कुशल खुद क्षेम, मिली पूरी आजादी ।
कुछ भी तो न वर्ज्य, मस्त आधी आबादी ।
का न करे अबला, प्रबल यह  पक्ष चुपाओ ।
राम चरित का पाठ,  कभी फिर और पढाओ ।। 


आज के अन्य लिंक-

स्वाभाविक जो कुदरती, कैसे सेक्स अधर्म -रविकर

Monday 23 July 2012

स्वाभाविक जो कुदरती, कैसे सेक्स अधर्म -रविकर


एक तरफ दुनिया भली, भलटी रविकर ओर।
भलमनसाहत गैर हित, मुझको मार-मरोर ।।


बहुत बहुत आभार है, नहीं हमसफ़र आप ।
साथ अगर मिलता कहीं,  रस्ता लेता नाप ।।


पोर्नोग्राफी विकृती, बड़ा घिनौना कर्म ।
स्वाभाविक जो कुदरती, कैसे सेक्स अधर्म ?

कैसे सेक्स अधर्म, मानसिक विकृत रोगी ।
होकर के बेशर्म, अनधिकृत बरबस भोगी ।

नर-नारी यह पाप, जबरदस्ती का सौदा ।
शादी सम्मति बिना, जहाँ मन-माफिक रौंदा ।। 
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कुत्ते जैसा भौंकना, गिरगिट सा रंगीन ।
गिद्ध-दृष्टि मृतदेह पर, सर्प सरिस संगीन । 

सर्प सरिस संगीन, बीन पर भैंस सरीखा ।
कर्म-हीन तन सुवर, मगर अजगर सा दीखा ।

निगले खाय समूच, हाजमा दीमक जैसा ।
कुर्सी जितनी ऊंच, चढ़ावा चाहे वैसा ।।

"धरती आज तरसती है" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

   

सूखे के आसार हैं, बही नहीं जलधार ।
हैं अषाढ़ सावन गए, कर भादौं उपकार ।।

लड़की को दुनिया में आने ही मत दो

सलीम अख्तर सिद्दीकी

बजे बाँसुरी बेसुरी, काट फेंकते बाँस ।
यही मानसिकता करे, कन्या भ्रूण विनाश ।

कन्या भ्रूण विनाश, लाश अपनी ढो लेंगे ।
नहीं कहीं अफ़सोस, कुटिल कांटे बो देंगे ।

गर इज्जत की फ़िक्र, व्याह करते हो काहे  ?  
नारी पर अन्याय, भरोगे आगे आहें ।।

"आज बस मुर्गियाँ "

सुशील at "उल्लूक टाईम्स "


 घर की मुर्गी दाल बराबर, मुँह में मरी मसूर नहीं है ।
आमलेट की बात करें क्या, दाल मिले न तूर कहीं है ।
  नई पुरानी लियें मुर्गियां, पंडित जी दड़बे में रक्खें-
लेकिन जब एडजस्ट करें न, मुर्ग-मुसल्लम पके सही है ।

Sunday 22 July 2012

वीरांगना प्रणाम, बहुत आभार शिवम् जी -रविकर



 

 कर्नल डा॰ लक्ष्मी सहगल का निधन

शिवम् मिश्रा 


नेता जी की खास थी, भारत की थी नाज |
लक्ष्मी दुर्गा थी बनी, कांपा इंग्लिश राज |


कांपा इंग्लिश राज, आज त्यागा यह काया |
जिसके प्रति न मोह, रखी न कोई माया | 


वीरांगना प्रणाम, बहुत आभार शिवम् जी |
ब्लॉग-जगत कृतग्य, हमें जो तुरंत खबर की |

  का न करै अबला प्रबल?.....(मानस प्रसंग-7)

 (Arvind Mishra) 
(1)
 बिगत युगों की परिस्थिति, मुखर नहीं थी नार ।
सोच-समझ अंतर रखे, प्रगटे न उदगार ।
 प्रगटे न उदगार, लांछित हो जाने पर ।
यह बेढब संसार, जिंदगी करता दूभर ।
रहस्यमयी वह रूप, किन्तु अब खुल्लमखुल्ला ।
पुरुषों को चैलेन्ज, बचे न पंडित मुल्ला ।
(2)
अब रहस्य कुछ भी नहीं, नहीं छुपाना प्रेम ।
कंधे से कन्धा मिला, करे कुशल खुद क्षेम ।
करे कुशल खुद क्षेम, मिली पूरी आजादी ।
कुछ भी तो न वर्ज्य, मस्त आधी आबादी ।
का न करे अबला, प्रबल है पक्ष चुपाओ ।
राम चरित का पाठ, इन्हें फिर कभी पढाओ ।।
 

चोर हूँ मैं

रचना दीक्षित 


बड़ा भला यह चोर है, बाकी सभी छिछोर ।
धन दौलत हीरे रतन, लालच रहे अगोर ।
 
लालच रहे अगोर,  चोर यह चोरा चोरी ।
चोर-गली से जाय, चुराए समय कटोरी ।

चम्मच से चुपचाप, अकेले पान करे है ।
यह चोरित अनमोल, चीज को पास धरे है ।।



छुट्टी कुछ दिन और अभी

sidheshwer 

हुक्का-पानी बंद की, चिंता रही सताय ।
डाक्टर साहब इसलिए , रहे हमें भरमाय ।

 रहे हमें भरमाय, नदी के तीर जमे हैं ।
प्राकृतिक परिदृश्य, मजे से मस्त रमे हैं ।

एक मास का समय, दिया रविकर ने पक्का ।
सीधे हों सिद्धेश, नहीं तो छीनें हुक्का ।।

" मेरा मन पंछी सा "

Reena Maurya 
तिनका मुँह में दाब के, मुँह में उनका नाम ।
सौ जोजन का सफ़र कर, पहुंचाती पैगाम ।

पहुंचाती पैगाम, प्रेम में पागल प्यासी ।
सावन की ये बूंद, बढाए प्यास उदासी ।

पंछी यह चैतन्य, किन्तु तन को न ताके ।
यह दारुण पर्जन्य, सताते जब तब आके ।।

तुम्‍हें ढूंढने के क्रम में ...

सदा  
  SADA  


बड़े पुन्य का कार्य है, संस्कार आभार ।
 तपे जेठ दोपहर की, मचता हाहाकार ।

मचता हाहाकार, पेड़-पौधे कुम्हलाये ।
जीव जंतु जब हार, बिना  जल प्राण गँवाए ।

हे मूरत तू धन्य , कटोरी जल से भरती ।
दो मुट्ठी भर कनक , हमारी विपदा हरती ।।



पिछले डेढ़-दो साल में यही तोप मारी है सरकार ने.


सबकी उन्नति है हुई, दो नम्बरी अनेक ।
क्रमश: पाते जा रहे, कुर्सी नंबर एक ।

 कुर्सी नंबर एक, कहीं एंटोनी राहुल ।
कहीं शरद की खीज, कहीं है सब कुछ ढुल-मुल  ।

लेकिन गुल हो रही, यहाँ बत्ती जनता की ।
मंहगाई की मार, करम ना एकौ बाकी ।।


मी लाड ! इसे स्कूल में डाल दिया जाये !



सकारात्मक सोच है, बाबा स्वामी एक ।
आदरणीय मोरार जी, बन्दे भले अनेक ।

बन्दे भले अनेक, नई थेरेपी पाई  ।
गुरुजन सारे नेक, करें न कभी पिटाई ।

कोई फिजिकल दंड, नहीं अब देते टीचर ।
केमिकल का यह दौर, मूत्र औषधि भी रविकर ।।




अमरीका नहीं देखा उसने जिसने लास वेगास नहीं देखा

veerubhai
ram ram bhai

नंगों के इस शहर में, नंगों का क्या काम ।

बहु-रुपिया पॉकेट धरो, तभी जमेगी शाम ।

तभी जमेगी शाम, जमी बहुरुपिया लाबी ।

है शबाब निर्बंध, कबाबी विकट शराबी ।

मन्त्र भूल निष्काम, काम-मय जग यह सारा ।

चल रविकर उड़ चलें, घूम न मारामारा ।।

भोग शिखर पर वे खड़े, कर्म शिखर पर राम |
सुख दोनों ही अहर्निश, भोग रहे अविराम |
भोग रहे अविराम, शाम से सुबह करें वे |
पुन: सुबह से शाम, जाम पर जाम भरें वे |
रविकर अपने राम, कर्म को समझें पूजा |
यही परम सुख धाम, नहीं घर खोजूं दूजा ||