Tuesday 10 July 2012

दो मुल्लाओं में हुई, मुर्गी आज हराम


दो मुल्लाओं में हुई, मुर्गी आज हराम ।
छुरी फिराते ही रटी, राम राम श्री राम ।
राम राम श्री राम, गिरी संता के घर पर।
बैठा बोतल खोल, मारता उसे झटक कर ।
झटका और हलाल, दौड़ कर मुल्ला आया ।
दोनों ठोकें ताल, देख रविकर घबराया ।। 
(1)
अक्ल खरचना बंद कर, शक्ल करे  काम |
ड्योढ़ी पर पानी भरें, पंडित कई गुलाम |

पंडित कई गुलाम,  गजब का आकर्षण है |
बिके सभी बेदाम, यही सच्चा कारण है |
 (रचना जी ने यौन-शोषण का आरोप लगाने की धमकी दी है, इसलिए उस शब्द को बदल दिया जिसका अर्थ, शब्दकोश में खाल, चर्म या चमड़ा लिखा  है )
  रविकर खुद बदनाम, पुरानी गड़बड़ रचना |
कुत्सित नजर हटाय, बंद कर अक्ल खरचना ||

(2)
हथिनी पागल हो गई, अंकुश करे न काम ।
इक पत्नी व्रत धार  के, मुश्किल में श्री राम ।

मुश्किल में श्री राम, लुभाती राक्षसनी  है ।
जाय गलत पैगाम, सुन्दरी भली बनी है ।

गोरी गोरी चर्म,  कर्म से चुड़ैल भुतनी  ।
रचना प्रभु की व्यर्थ,  घूमती  पागल हथिनी ।।

(3)
 फटीचरों की बात कर, खुलवाते हैं पोल ।
टीचर चर रविकर फटी, बाजे ढम ढम ढोल ।

 बाजे ढम ढम ढोल, फटीचर संबंधों से ।
पत्नी पुत्री पुत्र , फ्री अब सब बंधों से ।

एक काम अविराम, ताक दीवार घरों की ।
पटक पटक सिर फोड़, बात कर फटीचरों की । 

अभिव्यक्ति का  गला घोटती  मारी  रचना ।
जाति धर्म पर, यौन कर्म पर हारी  रचना ।
देवदासियां रही हकीकत, दुनिया जाने -
कब से भारी जुल्म सह रही नारी रचना ।

यौन-कर्म सी समलैंगिकता यहाँ हकीकत-
खुद ईश्वर पर भारी  है  अय्यारी  रचना ।
हिन्दू मुश्लिम सिक्ख इसाई जैन पारसी 
बौद्धों पर भी आज पड़  रही भारी रचना ।

शास्त्र तर्क से जीत न पाए खम्भा नोचे-
 हथियारों की धमकी देती हारी रचना ।
आंसू नहीं पोंछने वाले इस दुनियां में-
बड़ी बड़ी  तब देने लगती गारी रचना ।

श्रैन्गारिकता सुन्दरता पर छंद लिखो न 
हास्य व्यंग उपहास कला पर सारी  रचना ।।
रक्षाबंधन आने वाला  है  सावन  में-
 कृष्ण कन्हैया की भी आये बारी रचना ।।

अगर आप इस रचना के शुभचिंतक हैं तो यह लिंक जरुर देखें -

 

रवि कर फटी चर

डा।. अनवर विवाद / रविकर क्षमा-प्रार्थी : मेरे द्वारा डाला गया घी देखिये, जिसने आग भड़काई


24 comments:

  1. मिर्ची आये हाये मिर्ची !!

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  2. आपकी अकल खरचाना बंद करने के बार यह कह सकता हूं कि आज कविता में आए शुष्क एवं रुक्ष गद्य की बाढ़ के विरुद्ध ये कविता बेहद सुकून देती है।

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  3. आधी se adhik samajh se bahar.

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  4. अक्ल खरचना बंद कर, शक्ल करे जब काम |
    ड्योढ़ी पर पानी भरें, पंडित कई गुलाम |

    गुद्दी में जब अक्ल हो ,समझ कैसे आए ,
    बहुत बढ़िया व्यंग्य है आज के यथार्थ पर .

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  5. अरहर-चना संभाल के,सदा वापरो यार |
    जब अदहन कसके लगे,स्वाद होय तैयार ||

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    1. स्वाद होय तैयार, लगाओ घी का तड़का |
      पर हो जाये मार, पडोसी जाता भड़का |
      इ मुंह दाल मसूर, खाय न पावे रविकर |
      रचता फिर षड्यंत्र, डालके मुट्ठी कंकर ||

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  6. चाम में आकर्षण हैं
    कह कर
    अपनी मानसिकता की
    खुद खोल दी हैं पोल
    चमार को चाम
    सबसे ज्यादा हैं भाता
    उसकी रोजी रोटी
    चाम ही चलता
    बाकी सब के लिये
    ये कहना
    अब कानूनन
    यौन शोषण में हैं आता
    "रचना रची जब नार की
    सत्यम , शिवम् , सुन्दरम से
    शोभा बढ़ी संसार की "

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    1. बदल दिया है-
      पर उसका शाब्दिक अर्थ शब्दकोष में- खाल, चमड़ा ही दिया है-
      कुछ और नहीं |

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  7. आप को मेरी सब रचना में दोष ही नजर आता है-
    कहीं न कहीं कोई न कोई शब्द आप को अखर ही जाता है-
    पुरे ब्लॉग-वर्ल्ड को दुरुस्त करने की जिम्मेदारी ले राखी है आपने-
    अभी तक आपने इस पर कुछ नहीं कहा ताज्जुब है http://rhytooraz.blogspot.in/
    आप कभी यहाँ भी नहीं आई- जबकि मेरा खंड काव्य आपका कबसे इंतजार कर रहा है-
    http://dcgpthravikar.blogspot.in/
    या यहाँ भी नहीं-
    http://terahsatrah.blogspot.in/
    http://chitrayepanne.blogspot.in/
    यह सारे ब्लॉग मैं ही मैनेज करता हूँ-
    हर जगह आप को कुछ न कुछ केस करने लायक मिल ही जायेगा -
    आप ब्लॉग पुलिस का रोल करना बंद करें तो कृपा होगी |
    आप के भय से मेरी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का हनन हो रहा है-
    कृपया मेरे ब्लॉग पर आकर मेरा समय न बर्बाद करें |
    खुद तो अपना ब्लॉग आमंत्रित पाठकों के लिए और दुसरे के ब्लॉग पर बिना बुलाये आ जाती हैं मानसिक उत्पीडन करने-
    सबसे पहली भर आप को आभार और बधाई केवल इस लिए दी थी की मेरे ब्लॉग पर आकर आपने ८-९ टिपण्णी की थी-
    यह एक सामान्य शिष्टाचार है-
    जो आप नहीं समझती-
    आपको हर जगह धर्म जाती नारी और न जाने क्या क्या दीखता है -
    अगर आप शाल्लिन टिपण्णी कर सकते हैं तो ठीक अन्यथा मैं भी अपने ब्लॉग को प्रोटेक्ट करने की कोशिश करूँगा |
    आपका नाम अगर एक रचयिता की कृति से मिलता है तो उस रचयिता का क्या दोष |
    आपका इतना असर हुआ है दिमाग पर की
    यह शब्द स्वयं आकर अपनी जगह ले लेता है-
    सादर
    आप व्यर्थ दोष न लगाये,-
    अगर यह कविता सदोष है तो न जाने कितने कवी और कवियत्री यह दोष पहले कर चुके हैं -

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    1. yae haen satya jo aap kae man me thaa
      ujaagar hua
      dhanywaad
      isiiko bahar laanae mera kaam thaa
      aur
      mae tab aayii jab mera kament aap ne apane blog par diyaa
      uskae baad aap likhatae gaye mae jawaab daeti gayii

      kyaa karun khaali hun kaam koi haen nahin

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    2. आपका नाम अगर एक रचयिता की कृति से मिलता है तो उस रचयिता का क्या दोष |
      yae aap bhi soch saktae haen nahin socha

      ravi to suraj ko kehtae haen
      kar sae kartvya bhi hotaa

      so itna kyaa bhadkanaa mitr
      tumhari bhi kavita meri bhi kavita

      aur blog ko nimantrit kaeliyae kholna
      wahii to kitna mazaa haen naa

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  8. फटीचरों की बात कर, खुलवाते हैं पोल ।
    टीचर चर रविकर फटी, बाजे ढम ढम ढोल ।

    बाजे ढम ढम ढोल, फटीचर संबंधों से ।
    पत्नी पुत्री पुत्र , फ्री अब सब बंधों से ।

    एक काम अविराम, ताक दीवार घरों की ।
    पटक पटक सिर फोड़, बात कर फटीचरों की ।

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  9. बाजे ढम ढम ढोल, फटीचर संबंधों से ।

    ghar ghar ki yahii kehani haen

    aap ki jubani haen

    satya haen smaaj kaa

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  10. शास्त्र तर्क से जीत न पाए खम्भा नोचे

    wahii to aap kar rahey haen

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  11. एक पुरुष को लगातार उकसाने का काम कर रही हैं आप ||
    बहुत शरीफ बन्दा हूँ-
    कहीं और माथा पटकते तो अनुकूल परिणाम मिलते ||
    मैंने अपने यहाँ ब्लॉग को सभी की टिपण्णी के लिए फ्री कर रखा है पर अब आप से तंग आकर madration लागु कर रहा हूँ-
    जय श्री राम ||

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  12. एक पुरुष को लगातार उकसाने का काम कर रही हैं आप ||

    haa haa haa

    purush aur stri kaa vibedh sae upar uthae

    purush wo hota haen jisae stri purush samjhae

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    1. आप सरे-आम नहीं कह सकती यह बात |
      आप क्यूँ नहीं समझती हैं पुरुष, यह मत बता देना ||

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    2. रचना ने जो कहा हैं उसको समझा तो होता
      purush wo hota haen jisae stri purush samjhae
      ये पालने में त्रिदेव / अनुसुइया प्रकरण पर हैं

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    3. जी -
      अफ़सोस है,
      मुझे शब्दों के भाव पर और छुपे अर्थ पर |
      सन्दर्भ अलग है यह भी |
      ध्यान रखना चाहिए था |
      आप सचमुच विद्वान है |
      हे अन्तर्यामी ||

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    4. ब्रह्मा -विष्णु महेश की पत्नियों से मत बता देना |
      यही भावार्थ था -मेरी पंक्तियों का ||

      मेरे विद्वान दोस्त |
      आशा है आपकी शिकायत जरुर दूर हो गई होगी |
      प्रत्यक्ष मुलाक़ात हो -तो अच्छा ||

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    5. बेनामी कुछ चिट्ठियां, वेद ज्ञान भरपूर ।
      अन्सुय्या माँ की कृपा, रायचूर अति दूर ।
      रायचूर अति दूर, देख "कर-नाटक" देवा ।
      नंगे हैं त्रिदेव, कराये मातु कलेवा ।
      शर्माए त्रिदेव , जान न जाँय पत्नियाँ ।
      गर कह दोगी बात, हंसी हो जाय शर्तिया ।।

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  13. आखिर किस तरह आप इस नरकगामी काव्य (पता नहीं हैं क्या है ) को लिख पाए ???????
    सरस्वती की कृपा को चाम की बजाये राम में लगाते तो आज छंद इस प्रकार त्राहिमाम ना कर रहा होता .

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    1. पिछले एक सप्ताह से हो रही टिप्पणियां भी देखें-
      शालीनता हमेशा बनाये रखी है मैंने-
      यह लिंक हैं
      अगर समय हो तो मूल
      विवाद भी देख लें-
      आभार-
      डा।. अनवर विवाद / रविकर क्षमा-प्रार्थी : मेरे द्वारा डाला गया घी देखिये, जिसने आग भड़काई

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