Saturday 18 August 2012

जाल जला जल जाम, जमीं जर जंगल जोरू-

आज की और टिप्पणियां 
यहाँ हैं-
न हर्रे न फिटकरी, मार मलाई चाप -

नेक सलाह दे रहा हूँ......... !

पी.सी.गोदियाल "परचेत" at अंधड़ !

कभी डकैतों से रहा, चम्बल जल बदनाम |
आज फकैतों ने लिया, जाल जला जल जाम |
जाल जला जल जाम, जमीं जर जंगल जोरू |
रहे लूट दोउ हाथ,  बैठ मैं खीस निपोरुं |
पक्का किया करेज, लीज पर मैं भी लूंगा |
रक्खूं भूमि सहेज, घूस भी दूना दूंगा ||

असम हिंसा : क्या हो स्थायी हल

Suman
लो क सं घ र्ष !

तथ्यात्मक यह लेख है, पूर्णतया निष्पक्ष ।
दुनिया भर के लेखकों, समझो सारे पक्ष ।
समझो सारे पक्ष, दोष यूँ नहीं लगाओ ।
बने सही माहौल, किसी को नहीं भगाओ ।
अपने दुश्मन देश, लड़ाने का दे ठेका ।
 जाते हम पगलाय, जहाँ कुछ टुकड़े फेंका ।।

मृत्यु तक फांसी पर लटकाया जाये गोपाल कांडा को !

शिखा कौशिक
(विचारों का चबूतरा )  

जितने पल इसने जिये, दुःख के उतने मास ।
मांसखोर के अंग को, काट करें उपहास ।
काट करें उपहास,  उलट लटकाएं भैंसा ।
दंड नियम प्राचीन, मिले जैसे को तैसा ।
लेकिन जिम्मेदार, पिता भाई भी थोड़े ।
रूपया आता देख, रहे चुप पड़े निगोड़े ।।


तुम उसकी गर्दन नहीं नाप सकते

---देवेंद्र गौतम
पूर्वोत्तर की दुर्दशा, हँसा काल का गाल |
चढ़ा धर्म का गम-गलत, दे दरिया में डाल |
दे दरिया में डाल, रक्त से लाल हुई है |
फैले नित्य बवाल, व्यस्था छुई मुई है |
इच्छा शक्ति अभाव, भाव जिसको दो ज्यादा |
बनता वही वजीर, ऊंट घोडा गज प्यादा ||

 कार्टून :- मंगल पे मंगू

तेरे बिन कैसे वहां, बन पाए सरकार |
करते अपना पक्ष सबल, वोट पोट दरकार |
वोट पोट दरकार, तुम्हारे खातिर शातिर |
बना योजना खाँय, इसी में माहिर आखिर |
देखें अपना लाभ, करेंगे सीधा उल्लू |
ले जायेंगे साब, पियो पानी एक चुल्लू ||

ईद मुबारक

आमिर दुबई
मोहब्बत नामा  

 ईद मुबारक बंधुवर, होवे दुआ क़ुबूल ।
प्यारे हिन्दुस्तान में, बैठे उडती धूल ।
बैठे उडती धूल, आंधियां अब थम जावें ।
द्वेष ईर्ष्या भूल, लोग न भगें-भगावें ।
 झंझट होवे ख़त्म, ख़तम हों  टंटा -कारक  ।
दुनिया के सब जीव, सभी को ईद मुबारक ।।

न्यायिक दृष्टिकोण का यह खतना तो
खलिश पैदा कर रहा है


बामियान से लखनऊ, महावीर से बुद्ध |
हो शहीद मुंबई में, इ'स्मारक से युद्ध |
इ'स्मारक से युद्ध, दिखा नाजायज सारा |
क्यूँ मुसलमान प्रबुद्ध, करे चुपचाप गवारा |
आगे आकर बात, रखो पूरी शिद्दत से |
ठीक करो हालात, बिगड़ते जो मुद्दत से ||

काहे हउआ हक्का-बक्का..!

देवेन्द्र पाण्डेय
बेचैन आत्मा
 
गिरहकटों का काम है, पूरा धक्का मार |
ध्यान बटा कि सटा दें , इक ब्लेड की धार |
इक ब्लेड की धार, मरो ससुरों दंगों में |
माल कर गए पार, हुई गिनती नंगों में |
झूठ-मूठ के खेल, जान-जोखिम का शिरकत |
देंगें बम्बू ठेल, आँख बायीं है फरकत ||

3 comments:

  1. you are right .father and brother are also responsible for this .

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  2. बहुत बढ़िया..ईद मुबारक !

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