Monday 29 October 2012

रे मन रख विश्वास, स्वप्न ना रहें अधूरे-



"रिश्वत में गुम हो गई प्राञ्जलता" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक (उच्चारण) 

रिश्वत अस्मत से रहे, किस्मत आज खरीद |
मंहगाई में रोज वे, मना रहे बकरीद |
मना रहे बकरीद, यहाँ पर होते फांके |
हवा रहे हम फांक, लगाते दुष्ट ठहाके |
तड़क-भड़क ये सड़क, करे उनका नित स्वागत |
किस्मत अपनी रोय, बचा के रखते अस्मत ||

"बुद्धि के प्रकार" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक (उच्चारण) 

रबड़ बुद्धि वाला सुखी, सोवे चादर तान |
यही तेलिया बुद्धि है, उठा रहा अस्मान | 
उठा रहा अस्मान, कान इसके जो खींचे |
लंगी मार गिराय, पटक के मारे नीचे |
रविकर चमड़ा बुद्धि, सिखाया जितना जाता |
फुर्ती से निपटाय,  काम उतना कर आता ||

अधूरे सपनों की कसक (21)

रेखा श्रीवास्तव 

पूरे होंगे अवश्य ही, गति हो सकती धीम ।
सपनों में है जिंदगी,  शुभकामना असीम ।
शुभकामना असीम, इंच दर इंच बढ़ेंगे ।
एक एक कर पूर, नए फिर क्षितिज गढ़ेंगे ।
रे मन रख विश्वास, स्वप्न ना रहें अधूरे ।

दृढ़ इच्छा हो साथ, तभी तो होंगे पूरे ।।

Anita  
 मन की गंगा को मिले, मंजिल कभी कभार ।
जटाजूट में भटकती, हो मुश्किल से पार ।
हो मुश्किल से पार, करे कोशिशें भगीरथ ।
परोपकार सद्कर्म, जिन्दगी रविकर स्वारथ ।
स्वांस मौन के बीच, मचाये किस्मत दंगा ।
इसीलिए खो जाय, अधिकतर मन की गंगा ।।

शरद के चाँद प्रभु से कहना - नव गोपी गीत

tarun_kt 

 खींचा कितना मार्मिक, कवि ने दारुण दृश्य ।
कालिंदी का तट हुआ, मोहन क्यूँ अस्पृश्य ।
मोहन क्यूँ अस्पृश्य, द्रौपदी जब चिल्लाए ।
कानों पर दे हाथ, विदेशी पीजा खाए ।
निश्छल गोपी गोप, आँख उनसे क्यूँ मींचा । 
मुक्त करो हे नाथ, देह यह भरसक खींचा ।। 

अथ - शांता : सर्ग-1

पुन: प्रकाशित 

श्री राम की सहोदरी : भगवती शांता

 

भाग-1

Om

सोरठा  
  वन्दऊँ श्री गणेश, गणनायक हे एकदंत |
जय-जय जय विघ्नेश, पूर्ण कथा कर पावनी ||1||
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg1n9yDdPd4dRduzyHke7ALtuXRnaUBYxhnEvdZGVJ20jk1GSK5XBQNd2l9SA3zK31FQ7Nsjsxu_oC6YmrDA-vS1nHnXdQXYmreDZjom6tRXKVgqM7bHrpouCXdkhHJlPX8pyuoJSXYPx0/s1600/shree-ganesh.jpg

वन्दऊँ गुरुवर श्रेष्ठ, कृपा पाय के मूढ़ मति,
गुन-गँवार ठठ-ठेठ, काव्य-साधना में रमा ||2||

" मिलावटी - फेरबदल " जनता को चिढा रहा है..??

PD SHARMA, 09414657511 (EX. . VICE PRESIDENT OF B. J. P. CHUNAV VISHLESHAN and SANKHYKI PRKOSHTH (RAJASTHAN )SOCIAL WORKER,Distt. Organiser of PUNJABI WELFARE SOCIETY,Suratgarh (RAJ.) 

 बढ़ता बी पी सुगर सब, प्रेसर कोलेस्ट्रोल ।
 डेंगू होता देह में, नहीं रहा कंट्रोल ।
नहीं रहा कंट्रोल, पोल खुल गई बदन की ।
काका फांका करे, विदेशी आका सनकी ।
अंग अंग दो बदल, ताप तो जाए चढ़ता ।
अब न हो बर्दाश्त, दखल परदेशी बढ़ता ।

कुछ रिश्‍ते ... (6)

सदा 
 SADA -
देखे रिश्ते अनगिनत, खट्टे मीठे स्वाद ।
कुछ को भूले हो भला, रहें सदा कुछ याद ।
रहें सदा कुछ याद, नेह का मेह बरसता ।
 त्याग भाव नि:स्वार्थ, समर्पित खुद को करता ।
रविकर मूर्ति बनाय, पूज ले भले फ़रिश्ते ।
  रहो बांटते प्यार,  बनाओ ऐसे रिश्ते ।।

चांदनी का दरिया

आशा जोगळेकर 
चेहरा खुश्बू चांदनी, चली दिखाती राह ।
प्रेरित कर मौजूदगी, दे अदम्य उत्साह ।
दे अदम्य उत्साह, लगे उंगली है पकड़ी ।
जगी अनोखी चाह, प्रेम में जकड़ी जकड़ी  ।
डूब गया अब चाँद, अमावस में है पहरा ।
चलूँ अनवरत श्याम, देख के तेरा चेहरा ।।
(चेहरा=4 मात्रा सा उच्चारण है)

Your memory is like a game of telephone

Virendra Kumar Sharma 
 याद-दाश्त अच्छी रहे, सिखा रहे गुर गूढ़ ।
हुई आज कमजोर यह, क्या जवान क्या बूढ़ ।
क्या जवान क्या बूढ़, भुलक्कड़ लेकिन बनिए ।
लाभ दिखे प्रत्यक्ष, उधारी लेकर तनिये । 
भूल बुरी हर बात, साथ में हुई घटित जो ।
 कर ईश्वर को याद, हुआ है  हृदय व्यथित जो ।।

तस्वीर

मनोज कुमार

 नेह पिता का सर्वदा, हरदम आशिर्वाद ।
कूड़े कचरे में पड़े,  पर बाकी  उन्माद ।
पर बाकी उन्माद, अगर आश्रम में होते ।
गुरु नानक सा हाथ, किये चिर निद्रा सोते ।
अब रविकर आश्वस्त, नहीं डिस्टर्ब होयगा ।
'धूप' 'अगर' उजियार, शोर बिन यहाँ सोयगा ।।
 काव्य मंजूषा

 मांसाहारी सकल जग, खाता पशु प्रोडक्ट ।
कुछ देशों में व्यर्थ ही, लागू उल्टा एक्ट ।
लागू उल्टा एक्ट, कपूतों खून पिया है ।
हाड़-मांस खा गए, कहाँ फिर भेज दिया है ।
फिर से माँ को ढूँढ, दूध की चुका उधारी ।
मथुरा में जा देख, नोचते मांसाहारी ।।

4 comments:

  1. "रिश्वत में गुम हो गई प्राञ्जलता" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
    डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक (उच्चारण)
    उच्चारण


    रिश्वत अस्मत से रहे, किस्मत आज खरीद |

    मंहगाई में रोज वे, मना रहे बकरीद |

    मना रहे बकरीद, यहाँ पर होते फांके |

    हवा रहे हम फांक, लगाते दुष्ट ठहाके
    |
    तड़क-भड़क ये सड़क, करे उनका नित स्वागत |

    किस्मत अपनी रोय, बचा के रखते अस्मत ||

    अजी अब कौन मेज के नीचे से रिश्वत लेता है छोटी मोटी .क़ानून का फंडा

    लगा फंड खाते हैं और विदेश मंत्री का पद हथियाते हैं .

    रविकर जी बहुत बढ़िया काव्यात्मक टिप्पणियाँ की हैं आपने .

    ReplyDelete
  2. रविकर जी बहुत बढ़िया काव्यात्मक टिप्पणियाँ की हैं आपने .

    जीवन तर्क के हिसाब से नहीं अनुकूलन के हिसाब से आगे बढ़ता है .जैसा

    देश वैसा भेष .अलबत्ता आज हृदय विज्ञानी डेरी उत्पादों को दिल के लिए

    अच्छा नहीं मानते .अंडा और शुद्ध खालिस दूध दोनों कोलेस्ट्रोल बढ़ाएंगे

    भले कोलेस्ट्रोल कोशिका बढ़वार के लिए एक आवशयक तत्व है .

    गांधी जी ताउम्र बकरी का दूध पीते रहे .एक जगह उन्होंने गाय के दूध के

    लिए लिखा यह उसका खून है .

    कबीर ने कहा -

    बकरी पांति खात है ,ताकि मोटी खाल

    जे नर बकरी खात हैं तिनको कौन हवाल .

    अमरीका में गौ मांस सिर्फ खाया ही नहीं जाता फैंका भी जाता टनों की

    मात्रा में क्योंकि स्टोर्स में इसकी सेल्फ लाइफ खत्म हो जाती है .

    अलबत्ता गोरे इसमें से कोलेस्ट्रोल कम करने के उपाय कर रहें हैं .

    हम निर्णायक की भूमिका में आने वाले कौन होते हैं .जिसका जो जी करे

    खाए ,मुंह मारे जाके .
    क्या गाय या भैंस का दूध....शाकाहारी है ???
    अदा
    काव्य मंजूषा

    मांसाहारी सकल जग, खाता पशु प्रोडक्ट ।
    कुछ देशों में व्यर्थ ही, लागू उल्टा एक्ट ।
    लागू उल्टा एक्ट, कपूतों खून पिया है ।
    हाड़-मांस खा गए, कहाँ फिर भेज दिया है ।
    फिर से माँ को ढूँढ, दूध की चुका उधारी ।
    मथुरा में जा देख, नोचते मांसाहारी ।।

    ReplyDelete
  3. रविकर जी, सुंदर लिंक्स, आभार !

    ReplyDelete
  4. शब्दों की जीवंत भावनाएं... सुन्दर चित्रांकन

    ReplyDelete