Sunday 17 February 2013

बदलो उसका सेक्स, पुरुष कारा में डालो-



 क्वचिदन्यतोSपि...
थोथी दरियादिली से, पढ़ते लम्बे ड्राफ्ट |
समय सदा गतिमान है, क्यों करता दरियाफ्त |
क्यों करता दरियाफ्त, बीज पर तेज उर्वरक |
बेचारा अध्यक्ष, कोशिशे कर ले भरसक |
पर हो जाती देर, पढ़े सब अपनी पोथी |
बीज मन्त्र कर साफ़, दलीलें देते थोथी ||

 

  कल हारे का पूत या, *कलहारी का पूत |
भिगो भिगो के भूनता, खा जाता साबूत |
खा जाता साबूत, कल्हारे नमक मिर्च दे |
सबसे बड़ा कपूत, अकेले स्वयं सिर्ज ले |
दी-फेमिली महान, बड़े चॉपर हैं प्यारे |
मामा का एहसान, तभी तो हम कल हारे ||
*झगडालू

कार्टून :- हैलीकॉप्‍टर आया

  (काजल कुमार Kajal Kumar) 
 

तोपा तोपें तोपची, हेलीकाप्टर तोप |
जैसे वह गायब हुआ, वैसे इसका लोप |
वैसे इसका लोप, जाँच पर मामा बोला |
दाबे दस्तावेज, फेमिली जान टटोला |
जिन्दा है इंसान, भेंट कर इन्हें सरोपा |
इटली के मेहमान, केस को फिर से तोपा ||
 मेरा मन

फरियाद

धूप-छाँव के खेल में, दिल रत है दिन-रात ।
नफ़रत आखिर क्यूँ भरी, बिना बात की बात ।
बिना बात की बात, जरा झांको अन्तस में ।
रखते करके कैद, नहीं मैं अपने बस में ।
यह हसरत फ़रियाद, बाढ़ में फंसे गाँव के ।
अब लेना क्या स्वाद, खेल कर धूप छाँव के ।।

 शारीरिक बल में अगर, लगती है कमजोर ।
इक सम्मलेन ले बुला, ले निर्णय इक घोर ।
ले निर्णय इक घोर, अगर पैदा हो बेटा ।
काट हाथ दाहिना, मारिये एक चपेटा ।
कर पाए ना रेप, नहीं कर सकता है दिक् ।
रविकर जाता खेप, नहीं शोषण शारीरिक ।।   

एक स्वतंत्र स्त्री बनने मैं इतनी देर क्यूँ

करता कोई दैत्य यदि, नारी का अपमान ।
शारीरिक शोषण करे, मारे उसकी जान ।
मारे उसकी जान, दुष्ट की देह संभालो ।
बदलो उसका सेक्स, पुरुष कारा में डालो ।
मरता वह मर जाए, व्यवस्था से वह रोई ।
देख सजा का रूप, रेप नहिं करता कोई ।।

जस्टिस वर्मा को मिले, भाँति-भाँति के मेल ।
रेपिस्टों की सजा पर, दी दादी भी ठेल ।  

दी दादी भी ठेल, कत्तई मत अजमाना ।
 सही सजा है किन्तु, जमाना मारे ताना ।

जो भी औरत मर्द, रेप सम करे अधर्मा ।
चेंज करा के सेक्स, सजा दो जस्टिस वर्मा ।।
 अजित गुप्‍ता का कोना
पानी बिजली आ गई, बढ़ी जरुरत मूल |
इक-जुटता परिवार की, अब भी रहा उसूल |
अब भी रहा उसूल, अभी तक बिजली रानी |
रही जरुरत मूल, विलासी नहीं निशानी |
सरकारी इस्कूल, पढो घूमो मनमानी |
मरा नहीं अब तलक,  मित्र आँखों का पानी ||

भानमती की बात - राष्ट्रीय गाली .

प्रतिभा सक्सेना 
 गा ली अपनी भानमति, अपनी मति अनुसार |
गाली देकर पुरुष पर, करता पुरुष प्रहार |

करता पुरुष प्रहार, अगर माँ बहन करे है |
नहीं पुरुष जग माहिं,  कहाँ चुप
सहन करे हैं  |

मारे या मर जाय, जिंदगी क्या है साली |
इज्जत पर कुर्बान, दूसरा पहलू गाली ||


कैसी उदासी


Asha Saxena 
 Akanksha

मनचाहे व्यवहार की, कर दूजे से आस |
लेकिन हो निश्चिन्त मत, व्यर्थ पूर्ण विश्वास |
व्यर्थ पूर्ण विश्वास, ख़ास लोगों से चौकस |
होगा जब एहसास, दुखी हो जाए बरबस |
पग पग पर हुशियार, गली ऑफिस चौराहे |
दे जाते वे दर्द, जिन्हें अपना मन चाहे ||


(rohitash kumar) 

  वेलेंटाइन मस्त है, सात दिनों में पस्त ।

खोज रोज चाफ़ी वचन, हग कर काम प्रशस्त ।
हग कर काम प्रशस्त , किन्तु वासंतिक बेला ।
चलता दो दो माह, करे बेमतलब खेला ।
जोड़ो खाय पकाय, चिकेन तंदूरी वाइन ।
फेंक फाक फुरसतें, हो गया वेलेंटाइन ।। 


 (विष्णु बैरागी) 

 एकोऽहम्
पैनापन विश्वास पर, सुन्दरतम सामीप्य ।
जीवन रूपी दाल में, पत्नी छौंका *दीप्य ।
*जीरा / अजवाइन 
पत्नी छौंका *दीप्य, बढे जीवन रूमानी ।
पुत्र पुत्रियाँ पौत्र, तोतली मनहर वाणी ।

शुभकामना असीम, लड़ाओ वर्षों नैना ।
पर नंदी ले देख, हाथ में उनके ----।।
अब आप ही पूरी  कर दें यह पंक्ति-


बेगम पान चबाय के , छक्का चिड़ी बुलाय-


आदरणीय रविकर जी, एक प्रयास मेरा भी........
इक्के पर खामोश है, बादशाह कमजोर,
जेक जमाए चौकियां, बेगम खींचे डोर,
बेगम खींचे डोर, पड़ा पंजा खतरे में,
दहला सारा देश, बंटे सत्ता कतरों में,

दुगनी तिगनी स्पीड, भागते सारे छक्के,
अठ्ठे पठ्ठे ख़ास,चढ़े नहला करके इक्के/
  • Arun Kumar Nigam आदरणीय रविकर जी, एक प्रयास...
    इक्के पे इक्का चढ़ा, दुआ दुआ रहि मांग
    तिग्गी चौका देखती , पंजा खींचे टांग
    पंजा खींचे टांग , बजाता ताली छक्का
    सत्ता बावनपरी , आठ नहले का कक्का

    दहले जोकर क्वीन, किंग ही खाय मुनक्के
    ताश - महल बनवाय, एक हों चारों इक्के ||

रविकर की प्रतिक्रिया कुंडलिया 

बेगम पान चबाय के , छक्का चिड़ी बुलाय |
राजतिलक देती लगा, ईंट बादशा आय |
ईंट बादशा आय, रेत उसमे है ज्यादा |
एक आँख ही पास, जैक सा बनकर प्यादा |
खो देता अस्तित्व, दुष्ट सत्ता का सरगम |
बजा बजा के मस्त, हुकुम की अपनी बेगम ||

बसंत 


Dr. sandhya tiwari 

मस्त परिंदा हो गया, पर निंदा से दूर |
चोंच चोंच में चुलबुला, सारे दूर फितूर |
सारे दूर फितूर, मगन है वह बसंत में |
सारी खुशियाँ ढूंढ़, रही प्रियतमा कंत में |
रति-अनंग शिव आज, करें धरती पर ज़िंदा |
साधुवाद री सखी, जिए यह ब्लॉग परिंदा ||




6 comments:

  1. रविकर भाई, आपकी सक्रियता और समर्पण काबिले तारीफ है।
    इतने सारे उपयोगी लिंक्‍स उपलब्‍ध कराने का शुक्रिया।
    .............
    हिन्‍दी की 50 से अधिक ऑनलाइन पत्रिकाएं

    ReplyDelete
  2. क्या बात है सारा गुड़ ही गुड़ लिए हो एक बढ़के एक और इतना व्यापक फलक .

    ReplyDelete
  3. इक्के पे इक्का चढ़ा, दुआ दुआ रहि मांग
    तिग्गी चौका देखती , पंजा खींचे टांग
    पंजा खींचे टांग , बजाता ताली छक्का
    सत्ता बावनपरी , आठ नहले का कक्का
    दहले जोकर क्वीन, किंग ही खाय मुनक्के
    ताश - महल बनवाय, एक हों चारों इक्के ||,,
    क्या बात है,,,,अरुण जी,,,,

    ReplyDelete
  4. मेरी पोस्ट पर टिप्पणी हेतु आभार रविकर जी |
    आशा

    ReplyDelete
  5. बहुत सुन्दर टिप्पणियाँ!
    अभी 8 बजे वापिस आया हूँ घर में!

    ReplyDelete
  6. बहुत आभारी हूँ,रविकर जी !

    ReplyDelete