Wednesday 31 July 2013

उड़ा रही सरकार, देश को बना *तिलंगा-




दिलबाग विर्क 


बना तिलंगाना मधुर, गाओ प्यारे गीत |
आन्दोलन होता सफल, जाते दुर्दिन बीत |

जाते दुर्दिन बीत, जगा जाए आन्दोलन |
विदर्भ गोरखालैंड, पचासों का अनुमोदन  |

करो बाँट के राज,  पड़े पर भारी पंगा  |
उड़ा रही सरकार, देश को बना *तिलंगा |
*बड़ी पतंग 


सरदार पटेल की बिखरती भारतमाला


Kulwant Happy 

सत्यार्थमित्र


वर्धा में फिर होगा महामंथन








औगढ़ के औकात की, सुगढ़ होयगी जाँच |
ब्लॉगिंग के ये वर्ष दस, परखे पावन आँच |



परखे पावन आँच ,  बड़े व्याख्यान कराये |
वर्धा को आभार,  विश्वविद्यालय आये |



बीता शैशव काल, रही दुनिया खुब लिख पढ़ |
हित साधे साहित्य, सुधरते रविकर  औगढ़ ||






चंचल मन का साधना, सचमुच गुरुतर कार्य |
गुरु तर-कीबें दें बता, करूँ निवेदन आर्य |


 
करूँ निवेदन आर्य, उतरता जाऊं गहरे |
 
 वहाँ प्रबल संघर्ष, नहीं नियमों के पहरे |

 
बाहर का उन्माद, बने अन्तर की हलचल |
दे लहरों को मात, तलहटी ज्यादा चंचल ||
सृजन मंच ऑनलाइन
नाना विधि आगम निगम, करें व्याख्या श्याम |
अगर सफलता चाहिए, देख स्वप्न अविराम |


देख स्वप्न अविराम, तदनु उद्योग जरुरी |
भली करेंगे राम, कामना करते पूरी |


सपनों का संसार, मधुर है ताना बाना |
इसीलिए अधिकार, सभी का है सपनाना ||

खिलें इसी में कमल, विपक्षी पानी-कीचड़-

  "कुछ कहना है"
कीचड़ कितना चिपचिपा, चिपके चिपके चक्षु |

चर्म-चक्षु से गाय भी, दीखे उन्हें तरक्षु |



दीखे जिन्हें तरक्षु, व्यर्थ का भय फैलाता |

बने धर्म निरपेक्ष, धर्म की खाता-गाता |



कर ले कीचड़ साफ़,  अन्यथा पापी-लीचड़ |

खिलें इसी में कमल, विपक्षी पानी-कीचड़ |
चर्म-चक्षु=स्थूल दृष्टि
तरक्षु=लकडबग्घा

कीचड़ तो तैयार, कमल पर कहाँ खिलेंगे ??

कमल खिलेंगे बहुत पर, राहु-केतु हैं बंकु |
चौदह के चौपाल  की, है उम्मीद त्रिशंकु |

है उम्मीद त्रिशंकु, भानुमति खोल पिटारा |
करे रोज इफ्तार, धर्म-निरपेक्षी नारा |

ले "मकार" को साध, कुशासन फिर से देंगे |
कीचड़ तो तैयार, कमल पर कहाँ खिलेंगे  ??
*Minority
*Muthuvel-Karunanidhi 
*Mulaayam
*Maayaa
*Mamta 

काजल कुमार के कार्टून

 कार्टून:- लो, और बना लो तेलंगाना



गाना ढपली पर फ़िदा, सुने नहीं फ़रियाद |
पड़े मूल्य करना अदा, धिक् धिक् मत-उन्माद |

धिक् धिक् मत-उन्माद, रवैया तानाशाही |
चमचे देते दाद, करें दिन रात उगाही  |

 राज्य नए मुख्तार, और भी कई बनाना |
और उठे आवाज, बना जो तेलंगाना || 




बाहर का उन्माद, बने अन्तर की हलचल-

 
ताऊ रामपुरिया 
माला महकौवा मँगा, रखे चिकित्सक एक |
उत्सुकता वश पूछता, रोगी टेबुल टेक |

रोगी टेबुल टेक, महोदय हेतु बताना |
मेरा पहला केस, किन्तु तुम मत घबराना |

चीर-फाड़ जब सफल, गले में अपने डाला  | 
अगर बिगड़ता केस, डलेगी तुम पर माला ||

चंचल मन का साधना, सचमुच गुरुतर कार्य |
गुरु तर-कीबें दें बता, करूँ निवेदन आर्य |

करूँ निवेदन आर्य, उतरता जाऊं गहरे |

वहाँ प्रबल संघर्ष, नहीं नियमों के पहरे |
बाहर का उन्माद, बने अन्तर की हलचल |
दे लहरों को मात, तलहटी ज्यादा चंचल ||


कौन टाइप के हो समीर भाई


Girish Billore 



सदर सदारत जबर जबलपुर, लम्ब्रेटा की लम्बी चाल |
कुदरत का खुबसूरत टुकड़ा, देखा समझा बाल-बवाल |
खुश्बू वाला पान चबाये, होंठों को कर लेते लाल |
दीवारों पर नई कलाकृति, अब भी क्या देते हैं डाल --

सत्यार्थमित्र

वर्धा में फिर होगा महामंथन


औगढ़ के औकात की, सुगढ़ होयगी जाँच |
ब्लॉगिंग के ये वर्ष दस, परखे पावन आँच |
परखे पावन आँच ,  बड़े व्याख्यान कराये |
वर्धा को आभार,  विश्वविद्यालय आये |
बीता शैशव काल, रही दुनिया खुब लिख पढ़ |
हित साधे साहित्य, सुधरते रविकर  औगढ़ ||


pramod joshi 


गाना ढपली पर फ़िदा, सुने नहीं फ़रियाद |
पड़े मूल्य करना अदा, धिक् धिक् मत-उन्माद |

धिक् धिक् मत-उन्माद, रवैया तानाशाही |
चमचे देते दाद, करें दिन रात उगाही  |

 राज्य नए मुख्तार, और भी कई बनाना |
और उठे आवाज, बना जो तेलंगाना || 

Tuesday 30 July 2013

राज्य नए मुख्तार, और भी कई बनाना-



pramod joshi 


गाना ढपली पर फ़िदा, सुने नहीं फ़रियाद |
पड़े मूल्य करना अदा, धिक् धिक् मत-उन्माद |
धिक् धिक् मत-उन्माद, रवैया तानाशाही |
चमचे देते दाद, करें दिन रात उगाही  |
 राज्य नए मुख्तार, और भी कई बनाना |
और उठे आवाज, बना जो तेलंगाना || 

ताऊ और रामप्यारी की हरकीरत ’हीर’ से दो और दो पांच.....


ताऊ रामपुरिया 


माला महकौवा मँगा, रखे चिकित्सक एक |
उत्सुकता वश पूछता, रोगी टेबुल टेक |


रोगी टेबुल टेक, महोदय हेतु बताना |
मेरा पहला केस, किन्तु तुम मत घबराना |


चीर-फाड़ जब सफल, गले में अपने डाला  | 
अगर बिगड़ता केस, डलेगी तुम पर माला ||
पी.सी.गोदियाल "परचेत" 
खोजो शाला इक बड़ी, पढ़ते जहाँ अमीर  |
मनचाहा साथी चुनो, सुन राँझे इक हीर |

सुन राँझे इक हीर, चीर कर दिखा कलेजा |
सुना घरेलू पीर, रोज खा उसका भेजा |

प्रथम पुरुष को पाय, लगाए दिल वह बाला |
समय गया पर बीत, पुत्र हित खोजो शाला ||
सृजन मंच ऑनलाइन  

चंचल मन का साधना, सचमुच गुरुतर कार्य |
गुरु तर-कीबें दें बता, करूँ निवेदन आर्य |


करूँ निवेदन आर्य, उतरता जाऊं गहरे |
दिखे प्रबल संघर्ष, नहीं नियमों के पहरे |


बाहर का उन्माद, बने अन्तर की हलचल |
दे लहरों को मात, तलहटी ज्यादा चंचल ||
पूरण खण्डेलवाल
 फलता है हर फैसला, फैला कारोबार |
अधिकारी का हौंसला, तोड़े बारम्बार |
तोड़े बारम्बार, शक्ति दुर्गा की तोड़े |
सच्चाई की हार, वोट कुछ दल ने जोड़े |
छलता सत्ता-असुर, सिंह रह गया उछलता |
हुवा फेल अखिलेश, छुपाता सतत विफलता | 
दुर्गा पर भारी पड़े, शुतुरमुर्ग के अंड |
भस्मासुर को दे सकी, आज नहीं वह दंड |

आज नहीं वह दंड, नोयडा खाण्डव-वन है  |
कौरव का उत्पात, हारते पाण्डव जन हैं |

फिर अंधे धृतराष्ट्र, दुशासन बेढब गुर्गा |
बदल पक्ष अखिलेश, हटाते आई एस दुर्गा-

कौन टाइप के हो समीर भाई


Girish Billore 


सदर सदारत जबर जबलपुर, लम्ब्रेटा की लम्बी चाल |
कुदरत का खुबसूरत टुकड़ा, देखा समझा बाल-बवाल |
खुश्बू वाला पान चबाये, होंठों को कर लेते लाल |
दीवारों पर नई कलाकृति, अब भी क्या देते हैं डाल --

कमल खिलेंगे बहुत पर, राहु-केतु हैं बंकु |
चौदह के चौपाल  की, है उम्मीद त्रिशंकु |

है उम्मीद त्रिशंकु, भानुमति खोल पिटारा |
करे रोज इफ्तार, धर्म-निरपेक्षी नारा |

ले "मकार" को साध, कुशासन फिर से देंगे |
कीचड़ तो तैयार, 
मगर क्या कमल खिलेंगे--
*Minority
*Muthuvel-Karunanidhi 
*Mulaayam
*Maayaa
*Mamta 

सच्चाई की हार, वोट कुछ दल ने जोड़े-




अखिलेश सरकार अपनी विफलताओं को तुष्टिकरण की आड़ में छुपाना चाहती है !!

पूरण खण्डेलवाल

 फलता है हर फैसला, फैला कारोबार |
अधिकारी का हौंसला, तोड़े बारम्बार |
तोड़े बारम्बार, शक्ति दुर्गा की तोड़े |
सच्चाई की हार, वोट कुछ दल ने जोड़े |
छलता सत्ता-असुर, सिंह रह गया उछलता |
हुवा फेल अखिलेश, छुपाता सतत विफलता |

बनाने वाले ने हमें भी अगर, ऐसा ऐ काश बनाया होता

पी.सी.गोदियाल "परचेत" 

खोजो शाला इक बड़ी, पढ़ते जहाँ अमीर  |
मनचाहा साथी चुनो, सुन राँझे इक हीर |

सुन राँझे इक हीर, चीर कर दिखा कलेजा |
सुना घरेलू पीर, रोज खा उसका भेजा |

प्रथम पुरुष को पाय, लगाए दिल वह बाला |
समय गया पर बीत, पुत्र हित खोजो शाला ||

 

कीचड़ तो तैयार, मगर क्या कमल खिलेंगे-

कमल खिलेंगे बहुत पर, राहु-केतु हैं बंकु |
चौदह के चौपाल  की, है उम्मीद त्रिशंकु |

है उम्मीद त्रिशंकु, भानुमति खोल पिटारा |
करे रोज इफ्तार, धर्म-निरपेक्षी नारा |

ले "मकार" को साध, कुशासन फिर से देंगे |
कीचड़ तो तैयार, 
मगर क्या कमल खिलेंगे--
*Minority
*Muthuvel-Karunanidhi 
*Mulaayam
*Maayaa
*Mamta 


Durga Shakti Nagpal, a young woman IAS officer of 2010 batch has been shifted from Punjab care to Uttar Pradesh cadre on the ground of marriage to  Shri Abhishek Singh, IAS officer of 2011 batch of Uttar Pradesh Cadre.

दुर्गा पर भारी पड़े, शुतुरमुर्ग के अंड |
भस्मासुर को दे सकी, आज नहीं वह दंड |


आज नहीं वह दंड, नोयडा खाण्डव-वन है  |
कौरव का उत्पात, हारते पाण्डव जन हैं |


फिर अंधे धृतराष्ट्र, दुशासन बेढब गुर्गा |
बदल पक्ष अखिलेश, हटाते आई एस दुर्गा-

अपना ही दामाद, क्लीन चिट छापे अप्पा-

गट्टा पकड़े जाँच-दल, पर पट्ठा की ट्रिक्स |
मैच फिक्स करता रहा, करे जाँच अब फिक्स |  

करे जाँच अब फिक्स, बड़े दाउद का बप्पा |
अपना ही दामाद, क्लीन चिट छापे अप्पा |

बी सी सी आई राज, लगा इज्जत पर बट्टा |
अपने क्लब पर नाज, छुड़ा के भागे गट्टा ||


Monday 29 July 2013

दुर्गा पर भारी पड़े, शुतुरमुर्ग के अंड-




आज नहीं वह दंड, नोयडा खाण्डव-वन है-

Durga Shakti Nagpal, a young woman IAS officer of 2010 batch has been shifted from Punjab care to Uttar Pradesh cadre on the ground of marriage to  Shri Abhishek Singh, IAS officer of 2011 batch of Uttar Pradesh Cadre.

दुर्गा पर भारी पड़े, शुतुरमुर्ग के अंड |
भस्मासुर को दे सकी, आज नहीं वह दंड |

आज नहीं वह दंड, नोयडा खाण्डव-वन है  |
कौरव का उत्पात, हारते पाण्डव जन हैं |

फिर अंधे धृतराष्ट्र, दुशासन बेढब गुर्गा |
बदल पक्ष अखिलेश, हटाते आई एस दुर्गा-

“सरस्वती वन्दना” (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री “मयंक”)

सरस्वती वन्दना

माता के शुभ चरण छू, छू-मंतर हों कष्ट |
जिभ्या पर मिसरी घुले, भाव कथ्य सुस्पस्ट |



भाव कथ्य सुस्पस्ट, अष्ट-गुण अष्ट सिद्धियाँ |
पाप-कलुष हों नष्ट, ख़तम हो जाय भ्रांतियां |



काव्य
करे कल्याण, नहीं कविकुल भरमाता  |
हरदम होंय सहाय, शारदे जय जय माता ||

Untitled

Deepti Sharma 


त्रिज्याएँ त्रिजटा बने, हिम्मत पाए सीय |
बजरंगी नापें परिधि, होय मिलन अद्वितीय ||




 उल्लूक टाईम्स
ले दे के है इक शगल, टिप्पण का व्यापार |
इक के बदले दो मिले, रविकर के दरबार |
रविकर के दरबार, एक रूपये में मनभर |
काटे पांच रसीद, खाय बारह में बब्बर |
यहाँ बटें नि:शुल्क, नहीं ब्लॉगर को खेदे |
दे दे दे दे राम, नहीं तो ले ले ले दे ||


वोटों की दरकार, गरीबी वोट बैंक है-

लेकर कुलकर आयकर, करती क्या सरकार |
लोकतंत्र सुकरात का, वोटों की दरकार |

वोटों की दरकार, गरीबी वोट बैंक है | 
विविध भाँति सत्कार, तंत्र में फर्स्ट-रैंक है |

दे अनुदान तमाम, मुफ्त में राशन देकर |
करते अपना नाम, रुपैया हमसे लेकर ||

जीवन से कुल हास्य रस, जग ले जाए छीन-

अखरे नखरे खुरखुरे, जब संवेदनहीन  |
जीवन से कुल हास्य रस, जग ले जाए छीन |

जग ले जाए छीन, क्षीण जीवन की आशा |
बिना हास्य रोमांस, गले झट मनुज-बताशा |

खे तनाव बिन नाव, किनारा निश्चय लख रे |
लाँघे विषम बहाव, ज्वार-भांटा नहिं अखरे ||


Sunday 28 July 2013

कुक्कुर नोचे टांग, सुवर खट्टा कह जाए-




 जंगल में चल फेंक दे, उठें जानवर नाच |
यह रसीद अब फाड़ दे, पूरे टुकड़े पाँच |

पूरे टुकड़े पाँच, खोपड़ी बब्बर खाए |
कुक्कुर नोचे टांग, सुवर खट्टा कह जाए |

नोचे कमर सियार, मनाये लोमड़ मंगल |
खाए सकल गरीब, कराता पार्टी जंगल | |
आपका ब्लॉग

“सरस्वती वन्दना” (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री “मयंक”)

सरस्वती वन्दना

माता के शुभ चरण छू, छू-मंतर हों कष्ट |
जिभ्या पर मिसरी घुले, भाव कथ्य सुस्पस्ट |



भाव कथ्य सुस्पस्ट, अष्ट-गुण अष्ट सिद्धियाँ |
पाप-कलुष हों नष्ट, ख़तम हो जाय भ्रांतियां |



काव्य
करे कल्याण, नहीं कविकुल भरमाता  |
हरदम होंय सहाय, शारदे जय जय माता ||

नहीं व्यर्थ रक्त-पात, हिरन का मरना खलता-

स्वार्थ, शिथिलता, भय परे, हो साहस भरपूर |
अनुगामी को करे नहिं, नायक खुद से दूर |

नायक खुद से दूर, किन्तु पहचाने बागी |
निष्पादित रणनीति, करे बन्दा-वैरागी |

नहीं व्यर्थ रक्त-पात, हिरन का मरना खलता |
दे दुश्मन को मात, बिना मद स्वार्थ-शिथिलता 

Untitled


Deepti Sharma 


त्रिज्याएँ त्रिजटा बने, हिम्मत पाए सीय |
बजरंगी नापें परिधि, होय मिलन अद्वितीय ||






महेन्द्र श्रीवास्तव 

मजा लीजिये पोस्ट का, परिकल्पना बिसार |
शुद्ध मुबारकवाद लें, दो सौ की सौ बार |


दो सौ की सौ बार, मुलायम माया ममता |
कुल मकार मक्कार, नहीं मन मोदी रमता |

दिग्गी दादा चंट,  इन्हें ही टंच कीजिये |
होवें पन्त-प्रधान, और फिर मजा लीजिये ||


आज नहीं वह दंड, नोयडा खाण्डव-वन है-


Durga Shakti Nagpal, a young woman IAS officer of 2010 batch has been shifted from Punjab care to Uttar Pradesh cadre on the ground of marriage to  Shri Abhishek Singh, IAS officer of 2011 batch of Uttar Pradesh Cadre.
दुर्गा पर भारी पड़े, शुतुरमुर्ग के अंड |
भस्मासुर को दे सकी, आज नहीं वह दंड |

आज नहीं वह दंड, नोयडा खाण्डव-वन है  |
कौरव का उत्पात, हारते पाण्डव जन हैं |
फिर अंधे धृतराष्ट्र, दुशासन बेढब गुर्गा |
बदल पक्ष अखिलेश, हटाते आई एस दुर्गा-

रूपचन्द्र शास्त्री मयंक 

*बारमुखी देखा सुखी , किन्तु दुखी भरपूर 
इधर उधर हरदिन लुटी, जुटी यहाँ मजबूर 
 जुटी यहाँ मजबूर,  करे मजदूरी थककर 
 लेती पब्लिक घूर, सेक ले आँखें जी भर
मुश्किल है बदलाव, यही किस्मत का लेखा 
 सहमति का व्यवसाय, बारमुखि रोते देखा
* वेश्या / बार-बाला

 उल्लूक टाईम्स
ले दे के है इक शगल, टिप्पण का व्यापार |
इक के बदले दो मिले, रविकर के दरबार |
रविकर के दरबार, एक रूपये में मनभर |
काटे पांच रसीद, खाय बारह में बब्बर |
यहाँ बटें नि:शुल्क, नहीं ब्लॉगर को खेदे |
दे दे दे दे राम, नहीं तो ले ले ले दे ||


कुल मकार मक्कार, नहीं मन मोदी रमता-




महेन्द्र श्रीवास्तव 

मजा लीजिये पोस्ट का, परिकल्पना बिसार |
शुद्ध मुबारकवाद लें, दो सौ की सौ बार |

दो सौ की सौ बार, मुलायम माया ममता |
कुल मकार मक्कार, नहीं मन मोदी रमता |
 
दिग्गी दादा चंट,  इन्हें ही टंच कीजिये |
होवें पन्त-प्रधान, और फिर मजा लीजिये ||



आज नहीं वह दंड, नोयडा खाण्डव-वन है-


Durga Shakti Nagpal, a young woman IAS officer of 2010 batch has been shifted from Punjab care to Uttar Pradesh cadre on the ground of marriage to  Shri Abhishek Singh, IAS officer of 2011 batch of Uttar Pradesh Cadre.
दुर्गा पर भारी पड़े, शुतुरमुर्ग के अंड |
भस्मासुर को दे सकी, आज नहीं वह दंड |

आज नहीं वह दंड, नोयडा खाण्डव-वन है  |
कौरव का उत्पात, हारते पाण्डव जन हैं |

फिर अंधे धृतराष्ट्र, दुशासन बेढब गुर्गा |
बदल पक्ष अखिलेश, हटाते आई एस दुर्गा-

 उल्लूक टाईम्स
ले दे के है इक शगल, टिप्पण का व्यापार |
इक के बदले दो मिले, रविकर के दरबार |
रविकर के दरबार, एक रूपये में मनभर |
काटे पांच रसीद, खाय बारह में बब्बर |
यहाँ बटें नि:शुल्क, नहीं ब्लॉगर को खेदे |
दे दे दे दे राम, नहीं तो ले ले ले दे ||


पी.सी.गोदियाल "परचेत" 

   महा *महात्यय ही मिला, ठहरा कहाँ विनाश |
सिधर महात्मा दे गया, नाम स्वयं का ख़ास |


नाम स्वयं का ख़ास, करम मोहन के गड़बड़  |
रहा रोज ही पूज, आज भी गांधी बढ़कर |


हिन्दुस्तानी मूर्ख, रहा हरदम ही गम हा  |
पकड़े दौड़ लगाय, लिए वैशाखी दमहा ||
*सर्वनाश

doha salila : gataagat SANJIV

divyanarmada.blogspot.in 
 hindustaan ka dard
उत्तम दोहे मान्यवर, बहुत बहुत आभार |
भाग्य नाव खेता मनुज, छूटा एक अकार ||





शब्दकोष देते बदल, दल बल छल आयॊग |
सब "गरीब रथ" पर चढ़े, किये बिना उद्योग |
 
किये बिना उद्योग, हिरन खुद घुसे गुफा में |
खा जाए अब शेर, हाथ में बगुली थामे |
 
गजल कह रहे शेर, बदल कर आज गद्य को |
गिरता गया अमीर, सँभालो पकड़ शब्द को ||

जीवन से कुल हास्य रस, जग ले जाए छीन-

अखरे नखरे खुरखुरे, जब संवेदनहीन  |
जीवन से कुल हास्य रस, जग ले जाए छीन |

जग ले जाए छीन, क्षीण जीवन की आशा |
बिना हास्य रोमांस, गले झट मनुज-बताशा |

खे तनाव बिन नाव, किनारा निश्चय लख रे |
लाँघे विषम बहाव, ज्वार-भांटा नहिं अखरे ||
 हथेली में तिनका छूटने का अहसास
तालाबों ने पार की, सरहद फिर इस बार |
वर्षा का वर्णन विशद, मचता हाहाकार |


मचता हाहाकार, बड़े खुश हैं अधिकारी |
राहत और बचाव, मदद आई सरकारी |


नहीं दिखे सौन्दर्य , दिखे उनका मन काला |
गया गाँव जब डूब, लगाएं फिर क्या ताला ||

"कुण्डलियाँ-चीयर्स बालाएँ" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')


रूपचन्द्र शास्त्री मयंक 

*बारमुखी देखा सुखी , किन्तु दुखी भरपूर 
इधर उधर हरदिन लुटी, जुटी यहाँ मजबूर 
 जुटी यहाँ मजबूर,  करे मजदूरी थककर 
 लेती पब्लिक घूर, सेक ले आँखें जी भर
मुश्किल है बदलाव, यही किस्मत का लेखा 
 सहमति का व्यवसाय, बारमुखि रोते देखा
* वेश्या / बार-बाला