Thursday 7 November 2013

जन त्रिशंकु आदेश, खेल खेलेगा पैसा -



जलने से बच जाय तो, बन सकती है सास |
सास इसी एहसास से, देती साँस तराश |

देती साँस तराश, जलजला घर में आये |
और होय परिहास, जगत में नाक कटाये |

रविकर घर से निकल, चला है कालिख मलने |
लेकिन घर में स्वयं, बहू को देता जलने-


तक्षशिला में ढूंढते, मूर्ख आज तक खोट -

लगे पलीते दर्जनों, होंय सतत विस्फोट |
तक्षशिला में ढूंढते, मूर्ख आज तक खोट |

मूर्ख आज तक खोट, लड़े थे चन्द्रगुप्त-रण |
पकड़ शब्दश: तथ्य, भूल ना पाते भाषण |

कह रविकर एहसास, सभा भगदड़ बिन बीते |
भूल परिस्थित-जन्य, अगर हों लगे पलीते ||

घटनाएं जब यकबयक, होंय खड़ी मुँह फाड़ |
असमंजस में आदमी, काँप जाय दिल-हाड़ |

काँप जाय दिल-हाड़, बचाना लेकिन जीवन |
आये  लाखों लोग, जहाँ सुनने को भाषण |

कर तथ्यों की बात, गलतियां ढूंढे पटना |
सह मोदी आघात, सँभाले प्रति-दुर्घटना ||


सम-गोत्रीय विवाह: भगवती शांता : मर्यादा पुरुषोत्तम राम की सगी बहन

सम गोत्रीय विवाह

सवैया  
गोतज दोष नरेश लगे, तनया विकलांग बनावत है ।
माँ विलखे चितकार करे, कुल धीरज शान्ति गंवावत है ।
वैद गुनी हलकान दिखे, निकसे नहिं युक्ति, बकावत है ।
औध-दशा बदहाल हुई, अघ रावण हर्ष मनावत है ।।   




अरसीला अरविन्द *अर, अथ शीला सरकार | 
दृष्टि-बुरी जब कमल पर, होगा बंटाधार |

होगा बंटाधार, झेल तू  झारखण्ड सा |
जन त्रिशंकु आदेश, खेल खेलेगा पैसा |

बाढ़े भ्रष्टाचार, प्रशासन फिर से ढीला |
कीचड़ में अरविन्द, कहाँ शीला-अर सीला |
अर = जिद 
सीला =गीला / सीलन 
अरसीला = आलसी 


लिया पाक से बीज, खाद ढाका से लाये-

खीरा-ककड़ी सा चखें, हम गोली बारूद |
पचा नहीं पटना सका, पर अपने अमरूद |

पर अपने अमरूद, जतन से पेड़ लगाये |
लिया पाक से बीज, खाद ढाका से लाये |

बिछा पड़ा बारूद, उसी पर बैठ कबीरा |
बने नीति का ईश, जमा कर रखे जखीरा ||

6 comments:

  1. सुन्दरतम भाव से संपृक्त रचना ,

    ReplyDelete
  2. होगा बंटाधार, झेल तू झारखण्ड सा |
    जन त्रिशंकु आदेश, खेल खेलेगा पैसा |

    बहुत सही !
    साभार !

    ReplyDelete
  3. चर्चा का ये तरीका अद्भुत लगा...बहुत बहुत बधाई...

    ReplyDelete
  4. जलने से बच जाय तो, बन सकती है सास |
    सास इसी एहसास से, देती साँस तराश |

    देती साँस तराश, जलजला घर में आये |
    और होय परिहास, जगत में नाक कटाये |

    रविकर घर से निकल, चला है कालिख मलने |
    लेकिन घर में स्वयं, बहू को देता जलने-

    रविकर की कलम दिनानुदिन मोदी की तरह नै ऊंचाइयां छ्हू रही है कुछ करके मानेगी।

    ReplyDelete
  5. कौन है सेकुलर कौन है कम्युनल, रविकर खोले पोल ,

    पटेल बस सरदार था ,बात कहे सब खोल।

    बात पते की बोल ,....... दिखावे रोज़ तमाशे


    ................

    ReplyDelete