Friday 29 November 2013

पहल पुरुष के हाथ में, सम्पूरक दो देह

आखिर क्यों :आसान नहीं रहता है औरतों का कामानन्द प्राप्त होना

Virendra Kumar Sharma 

क्रीड़ा-हित आतुर दिखे, दिखे परस्पर नेह |
पहल पुरुष के हाथ में, सम्पूरक दो देह | 

सम्पूरक दो देह, मगर संदेह हमेशा |
होय तृप्त इत देह, व्यग्र उत रेशा रेशा |

भाग चला रणछोड़, बड़ी देकर के पीड़ा |
बनता कच्छप-यौन, करे न छप छप क्रीड़ा || 

माहिरों की राय : आसान नहीं रहता है औरतों का कामानन्द को प्राप्त होना आखिर क्यों ?

Virendra Kumar Sharma 

गोरी *गोही आदतन, द्रोही हरदम मर्द |
गर्मी पल में सिर चढ़े, पल दो पल में सर्द |

पल दो पल में सर्द, दर्द देकर था जाता |
करता था बेपर्द, रहा हर वक्त सताता |

बदली सबला रूप, खींच कर रखती डोरी |
होय श्रमिक या भूप, नचा सकती है गोरी ||
*छुपा कर रखने में सक्षम 
आ जा भारत रत्न, कांबळी रस्ता नापे










काम्बली की ओर से-

खा के झटका मित्र से, दिल का दौरा झेल |
जिस भी कारण से हुई, हुई दोस्ती फेल |

हुई दोस्ती फेल, कलेजा फिर से काँपे  |
आ जा भारत रत्न, कांबळी रस्ता नापे |

हुई दोस्त से भूल, माफ़ करदे अब आ के  |
लागे व्यर्थ कलंक, अकेले पार्टी खा के ||

लेकिन बंद कपाट, दनुजता बाहर आई-
खोजा-खाजी खुन्नसी, खड़ी खुद-ब-खुद खाट |
रेशम के पैबंद से, बहुत सुधारा टाट |

बहुत सुधारा टाट, ठाठ से करे कमाई |
लेकिन बंद कपाट, दनुजता बाहर आई |

कर के नोच-खसोट, बने जब खुद से काजी |
सम्मुख आये खोट, शुरू फिर खोजा-खाजी ||

सबूत होना जरूरी है ताबूत होने से पहले

सुशील कुमार जोशी 

छोटा है ताबूत यह, पर सबूत मजबूत |
धन सम्पदा अकूत पर, द्वार खड़ा यमदूत |

द्वार खड़ा यमदूत, नहीं बच पाये काया |
कुल जीवन के पाप, आज दुर्दिन ले आया |

होजा तू तैयार, कर्म कर के अति खोटा |
पापी किन्तु करोड़, बिचारा रविकर छोटा ||


हमने तो भोट डाल दिया आज ही 

अच्छा है यह फैसला, टाला सदन त्रिशंकु |
आप छोड़ते आप को, पैर पड़े नहीं पंकु |

पैर पड़े नहीं पंकु, हाथ का साथ निभाया |
दो बैलों का जोड़, लौट के घर को आया |

टाल खरीद फरोख्त, करो दिल्ली की रच्छा |
पाये बहुमत पूर्ण, यही तो सबसे अच्छा ||

विवाह एक 'घर' और 'परिवार' बनाता है जबकि लिव-इन केवल एक फौरी समझौता,जो कभी भी टूट सकता है !
फौरी समझौता सही, किन्तु सटीक उपाय |
सात जन्म के चक्र से, रक्षा भी हो जाय |

रक्षा भी हो जाय, नहीं क़ानूनी अड़चन |
छोड़-छाड़ हट जाय, अगर भर जाए तन-मन |

सोमवार व्रत छोड़, हुई कैलासी गौरी |
मची यहाँ भी होड़, शुरू समझौता फौरी ||

Thursday 28 November 2013

घटना से हैरान, अनोखे इसमें कारक -


विवाह एक 'घर' और 'परिवार' बनाता है जबकि लिव-इन केवल एक फौरी समझौता,जो कभी भी टूट सकता है !
फौरी समझौता सही, किन्तु सटीक उपाय |
सात जन्म के चक्र से, रक्षा भी हो जाय |

रक्षा भी हो जाय, नहीं क़ानूनी अड़चन |
छोड़-छाड़ हट जाय, अगर भर जाए तन-मन |

सोमवार व्रत छोड़, हुई कैलासी गौरी |
मची यहाँ भी होड़, शुरू समझौता फौरी ||

बच गई 'तलवार' की जान : दैनिक हिंदी मिलाप 29 नवम्‍बर 2013 अंक में संपादकीय पेज पर प्रकाशित

नुक्‍कड़ 




वार करे तलवार जब, सोच-विचार बगैर |
अपनों का काटे गला, तब उसकी नहिं खैर |

तब उसकी नहिं खैर, बैर जीवन से कर ले |
पाये देर-सवेर, मौत पर हर दिन मर ले |

घटना से हैरान, अनोखे इसमें कारक |
बने मसला फ़िल्म, कहाँ है कोई *वारक-

*निषेध करने वाला  

खुलासा : सोशल मीडिया का असली चेहरा !

महेन्द्र श्रीवास्तव 



(1) पैठ पठारे ले बना, लगा निहायत धूर्त |
नाजायज तरकीब से, करे समस्या पूर्त |

करे समस्या पूर्त, वायरस लाय तबाही |
यह काला व्यापार, चीज देता मनचाही |

साधुवाद हे मित्र, तथ्य रखते जो सारे |
काम करे कानून, ख़तम कर पैठ पठारे ||

(2)

बन्दा पैसा पाय के, रहा आत्मा बेंच |
रन्दा घोर चलाय के, ठोक रहा खुर-पेंच |

ठोक रहा खुर-पेंच, सुपारी-पान चबाता |
करता काम तमाम, सामने जो भी आता |

चमक उठा व्यवसाय, रहा जो पहले मन्दा |

देता चरित बनाय, करे अच्छा भी गन्दा ||

कार्टून :- अडवानी जी की सुनी आपने ?


छींके टूटे भाग्य से, टँगा यहाँ भी एक |
किन्तु नहीं टूटा कभी, छींके हुई अनेक |

छींके हुई अनेक, किन्तु उम्मीदें बाकी |
आने दो परिणाम, पिला देना तब साकी |

सड़े नहीं अंगूर, हुवे ना खट्टे फीके |
होवे पहले जीत, अभी ना कोई छीके || 


आखिर क्यों :आसान नहीं रहता है औरतों का कामानन्द प्राप्त होना

Virendra Kumar Sharma 

क्रीड़ा-हित आतुर दिखे, दिखे परस्पर नेह |
पहल पुरुष के हाथ में, सम्पूरक दो देह | 

सम्पूरक दो देह, मगर संदेह हमेशा |
होय तृप्त इत देह, व्यग्र उत रेशा रेशा |

भाग चला रणछोड़, बड़ी देकर के पीड़ा |
बनता कच्छप-यौन, करे न छप छप क्रीड़ा || 

डैडी के जन्मदिवस पर शुभकामना दोहावली

सरिता भाटिया 






प्यारा हीरक वर्ष यह, घर भर में उत्साह | 
ऐसे ही देते रहें, सादर हमें सलाह |

सादर हमें सलाह, राह दिखलाया हमको |

देते खुशियां बाँट, पिए हम सब के गम को |

रहें स्वस्थ सानंद, नेह की सरिता धारा |

रविकर करे प्रणाम, आपका अपना प्यारा ||


 

रहे हजारों वर्ष, सचिन पीपल सा दीखे-

(भावानुवाद )
दीखे पीपल पात सा, भारत रत्न महान |
त्याग-तपस्या ध्यान से, करे लोक कल्याण |

करे लोक कल्याण, निभाना हरदम होता |
विज्ञापन-व्यवसाय, मगर मर्यादा खोता |

थापित कर आदर्श, सकल जन गण मन सीखे |
रहे हजारों वर्ष, सचिन पीपल सा दीखे ||

सबूत होना जरूरी है ताबूत होने से पहले

सुशील कुमार जोशी 

छोटा है ताबूत यह, पर सबूत मजबूत |
धन सम्पदा अकूत पर, द्वार खड़ा यमदूत |

द्वार खड़ा यमदूत, नहीं बच पाये काया |
कुल जीवन के पाप, आज दुर्दिन ले आया |

होजा तू तैयार, कर्म कर के अति खोटा |
पापी किन्तु करोड़, बिचारा रविकर छोटा ||


खाये घर की दाल, मजे ले अक्सर रविकर-

करमहीन नर हैं सुखी, कर्मनिष्ठ दुःख पाय |
बैठ हाथ पर हाथ धर, खुद लेता खुजलाय |

खुद लेता खुजलाय, स्वयं पर रखें नियंत्रण |
दे कोई उकसाय, चले ठुकराय निमंत्रण |

टाले सकल बवाल, रहे मुर्गी से बचकर |
खाये घर की दाल, मजे ले अक्सर रविकर ||

Wednesday 27 November 2013

खुला भाड़ सा रह गया, मुँह सबका हरबेर -

खुला भाड़ सा रह गया, मुँह सबका हरबेर |
किये खुलासे सैकड़ों, मचा तहलका ढेर |

मचा तहलका ढेर, रपट भी कई दबाई |
दबा सका ना आज, किन्तु वह कौआ भाई |

पौरुष को धिक्कार, कराये अधम हादसा |
बेटी से व्यभिचार, रहा मुँह खुला भाड़ सा || 


नई ई-मेल लीक: तेजपाल ओर पीड़िता के बीच की बातचीत

SACCHAI

आज कचोटे आत्मा, हिला हिला अस्तित्व |
फ्लर्ट कहे दुष्कर्म को, झेले विपत सतीत्व |

झेले विपत सतीत्व, नौकरी करना भूली |
छेड़ दिया संघर्ष, चढ़ा दूँ इसको सूली | 

उस नरेश की उक्ति, जॉब के होंगे टोटे |
लज्जा जनक बयान, दुबारा आज कचोटे ||
'तरुण' और 'आसाराम' दो दुष्‍कर्मियों में से एक को पीएम बनाने का दबाव 'आम पब्लिक' यानी 'आप' पर बनाया जा रहा हो तो आप किस एक का चयन करेंगे।

 ये तो आउट हो गए, जायेंगे ये जेल |
छुपे हुवे रुस्तम कई, ढेरों नीम करेल |
ढेरों नीम करेल, उन्हीं से  होगा चुनना |
पा जाए जो बेल, जाल उनके हित बुनना |
वैसे रविकर सोच, ढूँढ माधव मिट्टी का | 
मुन्ना का इस बार, भाग्य से टूटे छींका ||

आज दुनिया के माँ -बाप शर्मसार हुए !
केवल दो इंसानों का कत्ल नहीं था ,इंसानी भरोसे का घिनौना क़त्ल था !
माँ -बाप से ज्यादा सुरक्षा तो भगवान के पास भी नहीं है !
बच्चो की गलतियों पर इतना हायपर नहीं होना चाहिए कि हम अपना आपा ही खो जाएँ और फिर ऎसी स्थिति आ जाए कि जो माँ -बाप के रिश्ते की हत्या हो जाये
आरूषि की हत्या के कसूरवार राजेश तलवार और नुपुर तलवार को आज कोर्ट ने मान लिया है , सजा कल सुनाई जायेगी !दोनों को कस्टडी में ले लिया गया है !
जो भी सबूत सामने आये ,उनके अनुसार ये दोनों दोषी नजर आ ही रहे थे !
बड़ी तेज तलवार है, बड़ा साधु वाचाल |
चालबाज चालाक ठग, ठोक रहे हैं ताल |

ठोक रहे हैं ताल, कहीं नूपुर सी जागृति |
जो भी हुआ अधीन, भोगता वो ही दुर्गति |

रविकर रहे सचेत, नहीं कर जाय हड़बड़ी |
पहचाने संकेत, होय फिर नहीं गड़बड़ी ||

जनसंख्या है ढेर, मरे कुछ इहि विधि मनई-

नई नीति नीतीश की, दारू पिए बिहार |
है अमीर तो क्या करे, दारू पी व्यभिचार |

दारू पी व्यभिचार, तरीका है अपनाया |
कमा रहा राजस्व, दुकाने कई खुलाया |

पिए और मर जाय, थाम ले लोटा-परई |
जनसंख्या है ढेर, मरे कुछ इहि विधि मनई ||

छित्बल मामा आज का, रखता तेज सहेज-

दुर्बल मामा कंस था, मारा भांजा तेज |
छित्बल मामा है चतुर, राखा तेज सहेज |

राखा तेज सहेज, कमल पर कीचड़ डाले |
पेज थ्री पर भेज, टटोले देखे भाले |

*सोम-योनि सिर लेप, डाल आशा का कम्बल |
नारायण को थाम, भटकता लेकिन दुर्बल ||,  
*सोम-योनि =हरिचन्दन 

नहीं छानना ख़ाक, बाँध कर रखो लंगोटा

केले सा जीवन जियो, मत बन मियां बबूल |
सामाजिक प्रतिबंध कुल, दिल से करो क़ुबूल |

दिल से करो क़ुबूल, अन्यथा खाओ सोटा  |
नहीं छानना ख़ाक, बाँध कर रखो लंगोटा |

दफ्तर कॉलेज हाट, चौक घर मेले ठेले |
रहो सदा चैतन्य, घूम मत कहीं अकेले |









Tuesday 26 November 2013

फरक उठे अंगांग, कमर के नीचे खेला-

#‪#‎Tehelka‬

तहलका के हलका होने की सत्‍यकथा
‪#‎CelebritiesIWantToSeeNaked‬ A E - 210 तहलका कैसे हुआ हलका : दैनिक जनसंदेश टाइम्‍स स्‍तंभ 'उलटबांसी' 26 नवम्‍बर 2013 में प्रकाशित


बढ़िया यह अंदाज है, उलटबाँसियाँ धन्य |
इतना बेहतर लिख सके, यहाँ कहाँ है अन्य |

यहाँ कहाँ है अन्य, तहलका रहा मचाता |
करता कृत्य जघन्य, बड़ी कालिमा कमाता |

चुन पिकनिकिया दोस्त, रंगा ले काली दढ़िया |
खाय मांसल गोश्त, करे प्रायश्चित बढ़िया-


जैसे ही लिफ्ट का दरबाजा खुला 
मैनें अपना अंडरवीयर उपर उठाया और बाहर भागी...
वह दरिंदा अभी भी मेरे पीछा कर रहा था...
मित्रों दरिंदगी यही खत्म नहीं हुई....
मित्रो तरूण तेजपाल से इस महिला पत्रकार ने जो कुछ किया वो दिल्ली में पिछले वर्ष हुए जघन्य अपराध से कम नहीं क्योंकि इस जानवर ने इस लड़्की से उसी तरह जोर जबरदस्ती की जिस तरह चलती बस में उन दरिंदों ने की थी बस फर्क इतना है कि इस दरिंदे के पास लोहे की छड़ नहीं थी वरना अगर आप परा वयौरा पढ़ोगे तो ये दरिंदा भी वही सब करने जैसे दरिंदगी पर उतारू था..
सुनील दत्त 

 दोहन को शोषण किया, गटक समूची भांग |
प्यार वासना में फरक, फरक उठे अंगांग |

फरक उठे अंगांग, कमर के नीचे खेला |
सत्साहस संघर्ष, टली वह संकट-बेला |

किन्तु तेज यह धूर्त, तहलका पर सम्मोहन |
जब सत्ता में पहुँच, करे वर्षों से दोहन ||



जो जमात लोकपाल के पक्ष के दखाई देता है , वही जमात अब तेजपाल के पक्ष में दिखाई दे रहा है ..

दिखायी दिए यूँ , मगर इस तरह कुछ ...


कितना अच्छा तुक मिला, लोकपाल के साथ |
तेज पाल के सर मगर, सदा रहा है हाथ | 
सदा रहा है हाथ, कमंडल-मंडल दुश्मन |

काला कौआ आज, दिखाया लेकिन दर्पन | 
तेज पाल का तेज, भाग  ले चाहे जितना |

है गोवा सरकार, छुपेगा आखिर कितना ||

मामा की शह पाय के, तरुणाई मदहोश |
लिफ्ट करा दे कैरियर, चित्र-जाल का जोश | 
चित्र-जाल का जोश, तहलका रहा मचाता |
कर के नोच-खसोट, आज लेकिन भन्नाता | 
राजनीति पर दोष, बता के दोषी भामा | 
चला बचाने जान, बचा पाये ना मामा ||
आज दुनिया के माँ -बाप शर्मसार हुए !
केवल दो इंसानों का कत्ल नहीं था ,इंसानी भरोसे का घिनौना क़त्ल था !
माँ -बाप से ज्यादा सुरक्षा तो भगवान के पास भी नहीं है !
बच्चो की गलतियों पर इतना हायपर नहीं होना चाहिए कि हम अपना आपा ही खो जाएँ और फिर ऎसी स्थिति आ जाए कि जो माँ -बाप के रिश्ते की हत्या हो जाये
आरूषि की हत्या के कसूरवार राजेश तलवार और नुपुर तलवार को आज कोर्ट ने मान लिया है , सजा कल सुनाई जायेगी !दोनों को कस्टडी में ले लिया गया है !
जो भी सबूत सामने आये ,उनके अनुसार ये दोनों दोषी नजर आ ही रहे थे !
बड़ी तेज तलवार है, बड़ा साधु वाचाल |
चालबाज चालाक ठग, ठोक रहे हैं ताल |

ठोक रहे हैं ताल, कहीं नूपुर सी जागृति |
जो भी हुआ अधीन, भोगता वो ही दुर्गति |

रविकर रहे सचेत, नहीं कर जाय हड़बड़ी |
पहचाने संकेत, होय फिर नहीं गड़बड़ी ||

कहानी- सवाल एक करोड़ का

savan kumar 








बेटा लगता दाँव पर, युद्ध-क्षेत्र में भीड़ |
अब नकार हुंकार या, तिनके तिनके नीड़ |

तिनके तिनके नीड़, चीर दे कई कलेजे |
यह तो टुकड़ा एक, करोड़ों कहाँ सहेजे | 

बिखर गए अरमान, कौन था उस दिन लेटा |
जब बिछ गई विसात, कौन फिर किसका बेटा ||

आम आदमी सा धरे, जहाँ पार्टी नाम-

एकाकी उस नाम से, औरत का क्या काम |
आम आदमी सा धरे, जहाँ पार्टी नाम |

जहाँ पार्टी नाम, कटे आधी आबादी |
रहें साथ कुछ ख़ास, ख़ास कुछ अम्मा दादी |

बदल आदमी सोच, उपेक्षा है अबला की |
मारे पंजा खोंच, उधर न जाए काकी ||

नित रविकर मनहूस, खाय धोखे पे धोखे-

धोखे देता जा रहा, कब से एक अनार |
सब्जबाग दिखला रहा, आम कई बीमार |

आम कई बीमार, बचे हैं ओस चाटकर |
ख़ास खा रहा खार, सदा अधिकार मारकर |

संसाधन ले चूस, प्रगति के सोते सोखे |
नित रविकर मनहूस, खाय धोखे पे धोखे ||







हौले हौले नजर मिलाई, प्रेम पाश ने जकड लिया,-
पर थाने जब करी शिकायत हक्के बक्के लगते हैं-