Thursday 30 November 2017

फिर सोने के दुर्ग में, पति बिन कौन उदास-

सच्चे शुभचिंतक रखें, तारागण सा तेज़।
अँधियारे में झट दिखें, रविकर इन्हें सहेज।।

शीशा सिसकारी भरे, पत्थर खाये भाव।
टकराना हितकर नहीं, बेहतर है अलगाव।।

खोज रहा बाहर मनुज, राहत चैन सुकून।
ताप दाब मधुमेह कफ़, अन्दर करते खून।।

ठोकर खा खा खुद उठा, रविकर बारम्बार।
लोग आज कहते दिखे, बड़ा तजुर्बेकार।।

गुमनामी में ही मिले, अब तो दिली सुकून।
शोहरत पा बेचैन है, रविकर अफलातून।।

सुखकर के पीछे पड़े, जो हितकर को भूल।
खुद को मिटते देखते, वो ही नामाकूल।। ।।

मानव के वश में नहीं, रंग-रूप-आकार।
पर अपने किरदार का, वो खुद जिम्मेदार।।

वाणी कार्य विचार को, दर किनार कर व्यक्ति।।
चेहरे से परिचय करे, हो अन्तत: विरक्ति।।

रविकर जीवन-पुस्तिका, पलटे पृष्ट समाज।
वैसे के वैसे मिले, थे जैसे अल्फ़ाज़।।

 शक्ति समय पैसा नहीं, मिले कभी भी संग।
वृद्ध युवा बालक दिखे, क्रमश: इनसे तंग।।

रविकर जीवन-पुस्तिका, पलटे पृष्ट हजार।
वैसे के वैसे मिले, शब्द-अर्थ हर बार।।

जो गवाह संघर्ष का, मूल्य उसे ही ज्ञात।
प्राप्त सफलता को कहें, अन्य भाग्य की बात।।

चक्की चलती न्याय की, देती घुन भी पीस।
असहनीय होती रही, बुरे वक्त की टीस।

अतिशय ऊँचा लक्ष्य जब, डगर नहीं आसान।
किन्तु डगर तो डग तले, मत डगमगा जवान।।

रुपिया हीरा स्वर्ण से, कौन बने धनवान।
शुभ विचार सद्मित्र से, धनी बने इन्सान।।

रैन बसेरे में रुके, या कोठी का व्यक्ति।
सोना रहे खरीद वे, दिखी गजब आसक्ति।।

सोने का मृग माँगती, जब रविकर पति पास ।
फिर सोने के दुर्ग में, पति बिन कौन उदास।।

गुड्डी उड़ी गुमान में, माँझे को दुत्कार |
लिए लुटेरे लग्गियाँ, दिखे घूटते लार ||||

दुर्जन पे विश्वास से, आधा दुखे शरीर।
सज्जन पे शक ने दिया, पूरे तन की पीर।।

Thursday 9 November 2017

पर दूसरे की गलतियों पर रह सका वह मौन कब-

जब मैल कानों में भरा, आवाज देना व्यर्थ तब।
आवाज़ कब अपनी सुने, मन में भरा हो मैल जब।
करता नजर-अंदाज खुद की गलतियाँ रख पीठ पे-
पर दूसरे की गलतियों पर रह सका वह मौन कब।।

Monday 6 November 2017

यद्यपि सहारे बिन जिया वह लाश के ही भेष में-


जिंदा मिला तो मारते, हम सर्प चूहा देश में।

लेकिन उसी को पूजते, पत्थर शिला के वेश में।
कंधा दिया जब लाश को तो प्राप्त करते पुण्य हम
यद्यपि सहारे बिन जिया वह लाश के ही भेष में।।



खिचड़ी

हुआ गीला अगर आटा, गरीबी खूब खलती है।
करो मत बन्धुवर गलती, नहीं जब दाल गलती है।
लफंगे देश दुनिया के सदा खिचड़ी पकाते हैं।
स्वयं का पेट भरते किन्तु, जनता हाथ मलती है।।

जुताई में बुवाई में सिंचाई में निराई में।
लगे दो माह पकने में, कटाई में पिटाई में।
कड़ी मेहनत समर्पण से मिले फिर अन्न के दाने।
कटोरा भर मगर जूठन रहे झट फेंक बेगाने।।


तुम रंग गिरगिट सा बदलना छोड़ दो।
परिपक्व फल सा रंग बदलो अब जरा।
जैसे नरम स्वादिष्ट मीठा फल हुआ।
वैसे मधुरता नम्रता विश्वास ला ।।


परिंदा यह बड़ा जिद्दी, बहुत सी ख्वाहिशें ढोये।
रहा नित खोजता मरहम, मगर गम लीलकर सोये।
सदा उम्मीद पर जिंदा, परिंदा किन्तु शर्मिन्दा
कतरती पंख उम्मीदें, प्रियतमा कैंचियाँ धोये।।


पहेली

पढ़ाये पाठ पहले गुरु, परीक्षा बाद में लेता।
सफलता प्राप्त कर चेला, प्रकट आभार कर देता।
महागुरु है मगर वह तो, परीक्षा ले रहा पहले,
सिखाता पाठ फिर पीछे, मनुज-मन मार से दहले।।

समस्यायें सुनाते भक्त दुखड़ा रोज गाते हैं-

प्रवंचक दे रहे प्रवचन सुने सब अक्ल के अंधे।
बड़े उद्योग में शामिल हुये अब धर्म के धंधे।।

अगर जीवन मरण भगवान के ही हाथ में बाबा।
सुरक्षा जेड श्रेणी की चले क्यों साथ में बाबा।
हमेशा मोह माया छोड़ना रविकर सिखाते जब
बना क्यों पुत्र को वारिस बिठाते माथ पे बाबा।।

समस्यायें सुनाते भक्त दुखड़ा रोज गाते हैं।
समझ भगवान बाबा को सदा दरबार आते हैं।
मगर जब रेप का आरोप बाबा पर लगे रविकर
वकीलों की बड़ी सी फौज तब बाबा बुलाते हैं।।

पड़ा बीमार जब वह भक्त पूजा-पाठ करवाये।
दुआ-ताबीज़ बाबा की मगर कुछ काम ना आये।
तबीयत किन्तु बाबा की जरा नासाज क्या होती
दुआयें भक्त तो करते, चिकित्सक किन्तु बुलवाये।।

Monday 30 October 2017

तलाशे घूर में रोटी, गरीबी व्यस्त रोजी में।-

तलाशे घूर में रोटी, गरीबी व्यस्त रोजी में।
अमीरी दूर से ताके डुबा कर रोटियाँ घी में।
प्रकट आभार प्रभु का कर, धनी वो हाथ फिर जोड़े।
गरीबी वाकई रविकर, कहीं का भी नहीं छोड़े।।

विचरते एक पागल को गरीबी दूर से ताकी।
कई पागल पड़े पीछे, बड़े बूढ़े नहीं बाकी।
प्रकट आभार प्रभु का कर, गरीबी फिर व्यथित होकर ।
कहे प्रभु से मुझे पागल बनाना मत कभी प्रभुवर।

गया पागल दवाखाने विविध रोगी वहाँ दीखें।
विविध बीमारियाँ घेरे, सुनाई पड़ रही चीखें।
ठिकाने होश आ जाते, कृपा प्रभु जी तुम्हारी है।
नहीं असहाय रोगी मैं, बड़ी शेखी बघारी है।

दिखी इक लाश ट्राली पर, नहीं बीमार घबराया ।
प्रकट आभार प्रभु का कर, मिली थी जो दवा खाया।
बड़े विश्वास से कहता, अभी तो आस बाकी है।
महज बीमार ही तो हूँ, अभी तो साँस बाकी है।

Sunday 15 October 2017

मुक्तक

जद्दोजहद करती रही यह जिंदगी हरदिन मगर।
ना नींद ना कोई जरूरत पूर्ण होती मित्रवर।
अब खत्म होती हर जरूरत, नींद तेरा शुक्रिया
यह नींद टूटेगी नहीं, री जिंदगी तू मौजकर।।

व्यवहार घर का शुभ कलश, इंसानियत घर की तिजोरी।
मीठी जुबाँ धन-संपदा, तो शांति लक्ष्मी मातु मोरी।
पैसा सदा मेहमान सा, तो एकता ममता सरीखी।
शोभा व्यवस्था से दिखे , हल से खुशी क्या खूब दीखी।

कभी क्या वक्त रुकता है, घड़ी को बंद करने से ।
कभी क्या सत्य छुपता है, अनर्गल झूठ बकने से।
करोगे दान तो थोड़ा, रुपैया खर्च हो जाता।
मगर लक्ष्मी नहीं जाती, अपितु आनन्द-धन आता।।

Tuesday 26 September 2017

दोहे

दानवीर भरसक भरें, रविकर भिक्षा-पात्र।
करते इच्छा-पात्र पर, किन्तु कोशिशें मात्र।।

भरता भिक्षा-पात्र को, दानी बारम्बार।
लेकिन इच्छा-पात्र पर, दानवीर लाचार।।

है सामाजिक व्यक्ति का, सर्वोत्तम व्यायाम।
आगे झुककर ले उठा, रविकर पतित तमाम।

रखे सुरक्षित जर-जमीं, रविकर हर धनवान।
रक्षा किन्तु जुबान की, कभी नहीं आसान।।

Sunday 17 September 2017

मगर शुभचिंतकों की खुद, करो पहचान तुम प्यारे


बहस माता-पिता गुरु से, नहीं करता कभी रविकर ।
अवज्ञा भी नहीं करता, सुने फटकार भी हँसकर।
कभी भी मूर्ख पागल से नहीं तकरार करता पर-
सुनो हक छीनने वालों, करे संघर्ष बढ़-चढ़ कर।।


किसी की राय से राही पकड़ ले पथ सही रविकर।

मगर मंज़िल नही मिलती, बिना मेहनत किए डटकर।
तुम्हें पहचानते बेशक प्रशंसक, तो बहुत सारे
मगर शुभचिंतकों की खुद, करो पहचान तुम प्यारे।।



Friday 25 August 2017

तलाक

जो जंग जीती औरतों ने आज भी आधी-अधूरी ।
नाराज हो जाये मियाँ तो आज भी है छूट पूरी।
शादी करेगा दूसरी फिर तीसरी चौथी करेगा।
पत्नी उपेक्षा से मरेगी वह नही होगी जरूरी।

पड़ी जब आँख पर पट्टी, निभाती न्याय की देवी।
तराजू ले सदी चौदह, बिताती न्याय की देवी।
मगर जब देवियाँ जागीं, मिला अधिकार तब वाजिब
विषम् पासंग पलड़े का, मिटाती न्याय की देवी।


संगीत से इलाज-

सुना दो राग दरबारी हृदय आघात टल जाये।
अनिद्रा दूर हो जाए अगर तू भैरवी गाये।
हुआ सिरदर्द कुछ ज्यादा सुना दो राग भैरव तुम
मगर अवसाद में तो राग मधुवंती बहुत भाये।

विहागी राग गा लेना अगर वैराग्य आये तो।
अजी मल्हार गा लेना गरम ऋतु जो सताये तो।
जलाया राग दीपक से दिया संगीत कारों ने।
चलो शिवरंजनी गाओ अगर विद्या भुलाये तो।

ललित से अस्थमा थमता पुराने गीत कुछ गाओ।
हुआ कमजोर तन तो राग जयवंती सुना जाओ।
बढ़े एसीडिटी जब भी खमाजी राग भाता है
करें संगीत भी उपचार प्रिय नजदीक तो आओ।।

जंगली पॉलिटिक्स

सरासर झूठ सुन उसका उसे कौआ नहीं काटा।
चपाती बिल्लियों को चंट बंदर ठीक से बाँटा।

परस्पर लोमड़ी बगुला निभाते मेजबानी जब।
घड़े में खीर यह खाया उधर वह थाल भी चाटा।

युगों से साथ गेंहूँ के सदा पिसता रहा जो घुन 
बनाया दोस्त चावल को नहीं जिसका बने आटा।।

मरा हीरा कटा मोती किसानों की बिकी खेती
खिला पीजा खिला बर्गर भरे फिर कार फर्राटा।

कभी खरगोश कछुवे को नहीं कमजोर समझा था
करा के मैच फिक्सिंग वो करेगा पूर्ण फिर घाटा।।

कुएं तक सिंह तो आया मगर झांका नही अन्दर
बुला खरगोश को रविकर अकेले में बहुत डाटा।।

Tuesday 22 August 2017

चले यह जिंदगी लेकर हमेशा शाम तक रिश्ते-

कहीं बेनाम हैं रिश्ते, कहीं बस नाम के रिश्ते।
चतुर मानुष बनाते हैं हमेशा काम से रिश्ते।

मुहब्बत मुफ्त में मिलती सदा माँ बाप से लेकिन
लगाये दाम की पर्ची धरे गोदाम में रिश्ते।

शुरू विश्वास से होते समय करता इन्हे पक्का
अगर धोखा दिया इनको गये फिर काम से रिश्ते।।

रहो चुपचाप गलती पर, बहस बिल्कुल नही करना
खतम नाराजगी हो तो चले आराम से रिश्ते।।

बड़ा भारी लगे मतलब, निकलते ही किया हलका
कई मन के रहे थे जो बचे दो ग्राम के रिश्ते।

कभी भी जिंदगी के साथ रिश्ते चल नही पाते
चले यह जिंदगी लेकर हमेशा शाम तक रिश्ते।।

पड़ी हैं स्वार्थ में दुनिया नहीं वे याद करते हैं
पड़े जब काम तो भेजें इधर पैग़ाम वे रिश्ते।।

रवैया मूढ़ता उनकी अहम् उनका पड़े भारी
नहीं वे रख सके रविकर हमेशा थाम के रिश्ते।।

Sunday 13 August 2017

हथियार के सौदागरों यूँ खून तुम पीते रहो।

ग्राहक तुम्हें मिलते रहें, हर मौत के सामान के ।
व्यापार खुब फूले फले संग्राम बर्बर ठान के।
जब जर जमीं जोरू सरीखे मंद कारक हो गये।
तब युद्ध छेड़े जाति के कुछ धर्म के कुछ आन के।
विध्वंश हो होता रहे नुकसान मत रविकर सहो।।
हथियार के सौदागरों यूँ खून तुम पीते रहो।।

आदेश दे उपदेश दे हर देश का शासक सदा।
जनता भरे सैनिक मरे परिवार भोगे आपदा।
दुल्हन नई नवजात भी करता प्रतीक्षा अनवरत्
करते रहेंगे जिन्दगी भर युद्ध की कीमत अदा।
दस लाख देकर धन्य है इस देश का शासक अहो।
हथियार के सौदागरों यूँ खून तुम पीते रहो।।

प्रतीक्षा हो रही लम्बी, भुलाओ मत चले आओ-

अजी अब देर क्यों करते, चले आओ चले आओ।
प्रतीक्षा हो रही लम्बी, भुलाओ मत चले आओ।।

यहाँ तू शर्तिया आये,खबर सुन मौत की मेरी।
दुखी जब सब सुजन मेरे, सुनें वे सांत्वना तेरी।
नहीं मैं सुन सकूँगा तब, अभी आके सुना जाओ।
अजी अब देर क्यों करते, चले आओ चले आओ।

करोगे माफ मरने पर, हमारे पाप तुम सारे ।
करोगे कद्र भी मेरी, पड़ा निर्जीव जब द्वारे।
नहीं मैं देख पाऊँगा, यही तुम आज दिखलाओ।
अजी अब देर क्यों करते, चले आओ चले आओ।

अभी कुछ व्यस्त ज्यादा हो, तुम्हें फुरसत नहीं मिलती ।
कहोगे व्यक्ति उम्दा था, मगर तब देह ना हिलती।
घरी भर साथ बैठो तुम, नही यूँ आज इतराओ।
अजी अब देर क्यों करते, चले आओ चले आओ।

Saturday 1 July 2017

रविकर के दोहे


जब गठिया पीड़ित पिता, जाते औषधि हेतु।
डॉगी को टहला रहा, तब सुत गाँधी सेतु।।

यदि दुख निन्दा अन्न सुख, पचे न अपने-आप।
बढ़े निराशा शत्रुता, क्रमश: चर्बी पाप ।।

अपनी गलती पर बने, रविकर अगर वकील।
जज बन के खारिज़ करे, पत्नी सभी दलील।।

प्रीति-पीर पर्वत सरिस, हिमनद सा नासूर।
रविकर की संजीवनी, रही दूर से घूर।।

जीवन-नौका तैरती, भव-सागर विस्तार।
लोभ-मोह सम द्वीप दस, रोक रहे पतवार।।

किया बुढ़ापे के लिए, जो लाठी तैयार।
मौका पाते ही गयी, वो तो सागर पार।

रविकर पल्ला झाड़ दे, देख दीन मेह`मान।
लेकिन पल्ला खोल दे, यदि आये धनवान।

वैसे तो टेढ़े चलें, कलम शराबी सर्प।
पर घर में सीधे घुसें, छोड़ नशा विष दर्प।।

Wednesday 28 June 2017

नारी कटा के चोटियाँ तब चोटियाँ चढ़कर दिखाये।


पुचकारते पापा मगर भाई लताड़े मर्द ताड़े।
आँखे तरेरे पुत्र भी तो आ रहा पति दम्भ आड़े।
जब पैर की जूती कहे जग अक्ल चोटी में बताये।
नारी कटा के चोटियाँ तब चोटियाँ चढ़कर दिखाये।।

Monday 15 May 2017

है पहाड़ सी जिन्दगी, चोटी पर अरमान


इनके मोटे पेट से, उनका मद टकराय।
कैसे मिल पाएं गले, रविकर बता उपाय ।।


सरिता जैसी जिन्दगी, रास्ता रोके बाँध।
करो सिंचाई रोशनी, वर्ना बढ़े सड़ाँध।।

है पहाड़ सी जिन्दगी, हैं नाना व्यवधान।
रविकर झुक के यदि चढ़ो, होवे आत्मोत्थान।।

रस्सी जैसी जिन्दगी, तने तने हालात्।
एक सिरे पर ख्वाहिशें, दूजे पे औकात।।


है पहाड़ सी जिन्दगी, चोटी पर अरमान।
रविकर जो झुक के चढ़े, वो मारे मैदान ।।

है पहाड़ सी जिन्दगी, हैं नाना व्यवधान।
रविकर झुक के यदि चढ़ो, हो चढ़ना आसान।।

है पहाड़ सी जिन्दगी, फिसलन भरी ढलान।
सँभल सँभल झुक के चढ़ो, होगा आत्मोत्थान ।।

है पहाड़ सी जिन्दगी, देखो सीना तान।
लेकिन झुक कर के चढ़ो, भली करें भगवान।।

है पहाड़ सी जिन्दगी, हिमनद जंगल झील ।
मिले यहीं संजीवनी, यहीं मौत ले लील ।।

Sunday 7 May 2017

भली करेंगे राम


झाड़ी में हिरणी घुसी, प्रसव काल नजदीक।
इधर शिकारी ताड़ता, उधर शेर की छींक।
उधर शेर की छींक, गरजते बादल छाये।
जंगल जले सुदूर, देख हिरणी घबराये।
चूक जाय बंदूक, शेर को मौत पछाड़ी। 
मेह बुझाए आग, सुने किलकारी झाड़ी।।


Sunday 30 April 2017

रविकर के दोहे

सच्चाई परनारि सी, मन को रही लुभाय।
किन्तु झूठ के साथ तन, धूनी रहा रमाय।।

सच्चाई वेश्या बनी, ग्राहक रही लुभाय।
लेकिन गुण-ग्राहक कई, सके नहीं अपनाय।।

मर्दाना कमजोरियाँ, इश्तहार चहुँओर।
औरत को कमजोर कह, किन्तु हँसे मुँहचोर।।

लेकर हंड़िया इश्क की, चला गलाने दाल।
खाकर मन के गुलगुले, लगा बजाने गाल।।

सीधे-साधे को सदा, सीधे साधे व्यक्ति।
टेढ़े-मेढ़े को मगर, साधे रविकर शक्ति।।

विषय-वासना विष सरिस, विषयांतर का मूल।
करने निकले हरि-भजन, रहे राह में झूल।।


जार जार रो, जा रही, रोजा में बाजार।
रोजाना गम खा रही, सही तलाक प्रहार।।

छलके अपनापन जहाँ, रविकर रहो सचेत।
छल के मौके भी वहीं, घातक घाव समेत।।

पल्ले पड़े न मूढ़ के, मरें नहीं सुविचार।
समझदार समझे सतत्, चिंतक धरे सुधार।।

चतुराई छलने लगे, ज्ञान बढ़ा दे दम्भ।
सोच भरे दुर्भाव तब, पतन होय प्रारम्भ।।

किस सांचे में तुम ढ़ले, जोबन बढ़ता जाय।
देह ढ़ले हर दिन ढ़ले, रविकर बता उपाय।।

Saturday 18 February 2017

सो जा चादर तान के, रविकर दिया जवाब

😂😂
पूरे होंगे किस तरह, कहो अधूरे ख्वाब।😂😂😂

सो जा चादर तान के, रविकर दिया जवाब।।

😂😂😂😂
क्वांरेपन से शेर है, रविकर अति खूंखार ।
किन्तु हुआ अब पालतू, दुर्गा हुई सवार।।
😂😂


कइयों की कलई खुली, उड़ा कई का रंग।
हुई धुलाई न्याय की, घूमें मस्त मलंग।।


जी भर के कर प्यार तू, कह रविकर चितलाय।
जी भर के जब वह करे, उनका जी भर जाय।।


भय
रही अनिश्चितता डरा, रविकर डर धिक्कार।
कहो इसे रोमांच तो, करे व्यक्ति स्वीकार।।

ईर्ष्या
दूजे की अच्छाइयाँ, कौन करे स्वीकार।
बना सको यदि प्रेरणा, ईर्ष्या जाये हार।।

क्रोध
चीज नियंत्रण से परे, तो रविकर रिसियाय।
करे तथ्य मंजूर यदि, वह सहिष्णु कहलाय।।


Sunday 12 February 2017

बापू को कंधा दिया, बस्ता धरा उतार-

बापू को कंधा दिया, बस्ता धरा उतार।
तेरह दिन में हो गया, रविकर जिम्मेदार।।

कर्तव्यों का निर्वहन, किया बहन का ब्याह।
भाई पैरों पर खड़ा, बदले किन्तु निगाह ।।

मैया ले आती बहू, पोती रही खिलाय।
खींचतान सहता रहा, सूझे नही उपाय।।

आँगन में दीवाल कर, बँधी खेत में मेड़।
पट्टीदारों से हुई, शुरू रोज मुठभेड़।।

खेत बेंच के कर लिया, रविकर जमा दहेज।
कल बिटिया का ब्याह है, आँसू रखे सहेज।।

शीघ्र गिरे दीवार वह, जिसमें पड़े दरार।
पड़ती रिश्तो में जहाँ, खड़ी करे दीवार।।

एक एक कण अन्न का, हर क्षण का आनन्द। 
कर ग्रहण रविकर सतत्, रख हौसले बुलन्द।।


करे शशक शक जीत पर, कछुवा छुवा लकीर।
छली गयी मछली जहाँ, मेढक ढकता नीर ।

Sunday 5 February 2017

नारि भूप गुरु अग्नि के, रह मत अधिक करीब-

 नारि भूप गुरु अग्नि के, रह मत अधिक करीब।
रहमत की कर आरजू, जहमत लिखे नसीब।।

सर्प व्याघ्र बालक सुअर, भूप मूर्ख पर-श्वान।
नहीं जगाओ नींद से, खा सकते ये जान।।

कठिन समस्या के मिलें, समाधान आसान।
परामर्शदाता शकुनि, किंवा कृष्ण महान।।

शिल्पी-कृत बुत पूज्य हैं, स्वार्थी प्रभु-कृत मूर्ति।
शिल्पी-कृत करती दिखे, स्वार्थों की क्षतिपूर्ति।

गारी चिंगारी गजब, दे जियरा सुलगाय।
गा री गोरी गीत तू , गम गुस्सा गुम जाय।।

Monday 30 January 2017

सत्ता कम्बल बाँट दे, उनका ऊन उतार-

भेड़-चाल में फिर फँसी, पड़ी मुफ्त की मार।
सत्ता कम्बल बाँट दे, उनका ऊन उतार।

पैसे पद से जो जुड़े, सुख मे ही वे साथ।
जुड़ वाणी व्यवहार से, ताकि न छूटे हाथ।।

आ जाये कोई नया, अथवा जाये छोड़।
बदल जाय तब जिंदगी, रविकर तीखे मोड़।।

नीम-करैले का चखे, बेमन स्वाद जुबान।
लेकिन खुद कड़ुवी जुबाँ, रही पकाती कान।।

अम्ल लवण मधु मिर्च तक, करे पसन्द जुबान।
किन्तु करैले नीम से, निकले रविकर जान।।

Thursday 12 January 2017

लंगड़ी मारे अपना बेटा-

बातों में लफ्फाजी देखो।
छल छंदों की बाजी देखो।।

मत दाता की सूरत ताको।
नेता से नाराजी देखो।।

लम्बी चैटों से क्या होगा।
पंडित देखो काजी देखो।।

अंधा राजा अंधी नगरी।
खाजा खा जा भाजी देखो।।

लंगड़ी मारे अपना बेटा
बप्पा चाचा पाजी देखो।।

पैसा तो हरदम जीता है
रविकर घटना ताजी देखो।।